कविताअन्य
नव किसलय सी सुकुमारी नव वधू,
गृह प्रवेश कर तनिक सकुचाई।
मानो गुलाब की कली,
काँटों के मध्य घबराई।
मृग नयनी की सहमी नज़रें,
यहाँ -वहाँ फिराई।
जड़ से उखाड़ कर रोपा है मुझको,
बाबुल ने इस उपवन में।
हरियाऊँगी या मुरझाऊँगी,
संदेह है इस मन में।
मैं पिता की राजकुमारी,
बस पाऊँगी सबके हिय में।
सास ने पढ लिया मेरे चेहरे को,
असमंजस देख मुझे दुलराया।
न घबराओ मेरी बिटिया,
तेरे रूप में अँगने में चाँद उतर आया।
शैवालिनी सी बन जाना,
पवित्र करना सारा परिवार।
तुम गृह गौरव हो,
मिलेगा तुम्हें सम्मान।
पर तुम भी बिटिया,
न करना कभी किसी का अपमान।
आनन्दित हुवा मन सुनकर उनका कथन,
उल्लासित हो उसने किया सप्रेम नमन्।
मीरा शिंजनी