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कठघरा - meera tewari (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कठघरा

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कठघरा
इतने ख़ंजर उतरे हैं इस दिल पर,
जिसने भी साधा निशाना ग़ज़ब का लिया।
जान के अनजान बनते रहे हम,
अपनी मौत का सामान मैंने अजब किया।
मंजिल तो थी ही नहीं उधर,
जिधर मैंने कदमों को बढ़ा दिया।
जुल्म इस कदर हावी हुआ इस दीवानगी का,
कतरा -कतरा खून-ए-जिगर रिसता गया।
अपनों ने खड़ा किया सरे आम बाज़ार में,
टुकड़ों-टुकड़ों में किरदार मेरा रूसवा किया।
तमन्नाओं का मैंने खून कर दिया जिनके लिए,
उसी ने मुझे सरे आम नकार दिया।
बात इतनी सी है इस संसार में,
तमाशा मेरा अपनों ही ने बना दिया।
इस ज़लालत से उबर पाए तो पूछेंगे कान्हा से,
तुमने यह भला किया या बुरा किया।
जितने भी ग़म हैं इस जहाँ मे,
पूरे के पूरे से मेरा आँचल भर दिया।
“शिंजनी “ तू हौसला न छोड़,
क्या हुआ जो तेरे पंखों को सबने कुतर दिया।
ज़माना न आज किसी का है न होगा,
क्या हुआ जो एक बार तू फिसल गया।
इक आह से ही जल गए मेरे दिल के तार,
लोंगों ने तो मेरा पूरा वजूद जला दिया।

मीरा शिंजनी

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