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"रामरती चाची " 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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"रामरती चाची " 🍁🍁

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" रामरती चाची " 🍁🍁
अंक ... 2

प्रिय पाठकों प्रस्तुत है रामरती चाची का अगला अंक कि किस प्रकार रामरती पति योगेश के द्वारा ठुकराए जाने के बाद अपनी और योगेश की माँ का भरण -पोषण करने में जुट गई है।
अब आगे...

जिनके पिया उन्हें छोड़ जाते हैं , उनके लिए खुदा की खुदाई भी उदार हो जाती है। रामरती ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके जीवन में ऐसी काली रात कभी आएगी। उसे हठात् समझ में नहीं आया कि वह क्या करे और कहाँ जाए।

पिछले कितने सालों में माएके के नाम पर कुछ रहा कहाँ था वहाँ अब जाने का प्रश्न ही नहीं उठता । बरसों पीछे छूटे माएके से अब कोई आता-जाता भी तो नहीं ।

फिर उसने हिम्मत नहीं हारी उसका घर शहर की ओर जाने वाली सड़क के पास ही था। जिसके थोड़ा आगे जा कर ही बड़े से नामीगिरामी कॉलेज का कैंपस शुरु हो जाता था।

रामरती उसी रास्ते पर खड़ी बौराई सी योगेश के आने कि रास्ता देखती रहती। पर उसे क्या पता है कि जाने वाले लौट कर नहीं आते तो योगेश भी वापस आने के लिए नहीं गया था।

रामरती कॉलेज आनेजाने वाले छात्र छात्राओं के तेज हँसी की फुहारें तो कभी चटखारे ले कर बाते करती उनकी गहमागहमी को देख कर अपना मन बहला लिया करती। अब उसके मनोरंजन का यही एकमात्र साधन था।

रामरती के आगे अब अपना और योगेश की माँ के जीवन यापन की समस्या भी मुँह खोल कर खड़ी थी। वह इन्टर पास है और सलीके से बात कर पाती है। इसलिए बहुत सोच विचार कर फिर रामरती ने एक फैसला लिया। उसने गाँव के बाहर ही अपनी एक छोटी सी दुकान के लिए जगह चुन ली जहाँ से आगे शहर की सीमा शुरु हो जाती है।

यहाँ हरियाली भी बहुत थी पंछियों की चहचहाहट से भरी हुई जगह थी वो। यह जगह उसने योगी की माँ को भी साथ ले जाकर दिखा दिया। उन्हें भी जगह बहुत पसंद आई। अब दुकान जमाने के लिए ज्यादा तो नहीं पर न्यूनतम धन की आवश्यकता तो थी ही।

स्वभाव से स्वाभिमानी रती के हाथ खाली जरूर हैं पर किसी बाहरी के सामने हाथ फैलाना उसे कतई मंजूर नहीं है। तब योगी की माँ सामने आई उसने अपने गले में पड़ी एकमात्र चेन निकाल कर रामरती के हाथ में रख दी। रामरती को यह बिल्कुल मंजूर नहीं था। लेकिन अभी उसे और दूसरी कोई राह सूझ भी नहीं रही थी।

रामरती उस चेन को लेकर शहर जा कर बेचने के बजाए गिरवी पर रख कर आ गई । इस उम्मीद में कि जब कभी अगर योगेश आ गया या फिर देर सबेर चेन छुरवा कर वह माँ को वापस कर सकेगी
रुपये मिल जाने से अब चाय की दुकान खोलने का मन बना लिया रामरती ने।

रुपय से दुकान के लिए किवाड़ , चौखट छत के लिए खपरैल और कप -प्लेट डेकची वगैरह ,वगैरह चीजें खरीदना आसान हो गया। जिस दिन दुकान बन कर तैयार हो गया रामरती की खुशी देखते बनती थी। उसने योगेश की माँ से नारियल फोरवा कर गृहप्रवेश की रस्म पूरी की।

योगेश की माँ के सामने और कोई रास्ता भी नहीं था। भरी जवानी में रामरती की खाली खाली आंखें, धूप में तमतमाया चेहरा और जीवन में एक मर्द की कमी आखिर कैसे पूरी करती वो।

इतना सब होते हुए भी वह रामरती पर कड़ी नजर रखती। मौका बेमौका बातों की तीर से वार करना नहीं चूकतीं। रामरती भी इस बात को जानती और चुप रहती ।
आखिर उसकी बेरस , बेरंग कड़ी धूप सी जीवन के लिए तो वो ही घनी साया बन कर उभरी हैं। योगेश के घर छोड़ कर चले जाने के बाद से तो उन दोनों ही सास बहू के लिए दिन दिन ना हुए और रात रात न हुए। तब धीरे -धीरे दोनों ने ही जीवन में आए खाली हिस्से को अपने -अपने ढ़ंग से भरने की कोशिश में एक दूसरे की सहेली बन कर रह गई हैं ।

क्रमशः

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दादी की परी
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