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"धूल वाली लड़की " 🍁🍁 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँ

"धूल वाली लड़की " 🍁🍁

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#वैलेंटाइन्स

#शीर्षक
"धूल वाली लड़की " 🍁🍁
धीरज को अपने स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप ज्वॉएन किए हुए कुछ दिन ही तो गुजरे हैं।
और अब उसके पर्सनल नम्बर के वॉट्सएप पर मेसेज करते हुए धीरज थोड़ा घबराया हुआ था, लड़की ने उसके वॉट्स-एप स्टेटस को देखकर थम्स-अप का इशारा किया था और डीपी की भी तारीफ की थी, लेकिन...इसके आगे।

उसने कुछ मेसेज नहीं किया। दफ़्तर के लिए तैयार होते वक़्त एक निगाह घड़ी की तरफ थी, दूसरी फोन पर। लेकिन नेटवर्क ग़ायब।
उसका जी उचट गया। वह बचपन से ही ऐसा है। बचपन में कुछ दिन उसने विचित्र मानसिक ऊहापोह में गुजारे हैं।जब वह किशोर था।
तब अपनी क्लासमेट को बचाने के चक्कर में सामने से आती स्कूल बस की चपेट में आ कर कोमा में चला गया था।
उसके माता-पिता ने बेहद सावधानी पूर्वक जैसे उलझे हुए ऊन के गोले को सुलझाया जाता है ना वैसे ही उसके दिमाग की गुत्थी को सुलझाया था। लेकिन कमजोर मन पर पड़ी सैरंर्ध्री की अमिट छाप को दूर नहीं कर पाये हैं।

और अब न जाने क्यों उस व्हाट्सएप वाली लड़की की डी.पी में उसे फिर से सैरंध्री की प्यारी धुंधली सी छवि दिखती है।
वह जब-तब बेचैन हो जाता है...।
आज मेट्रो में बैठते हुए बस गुड-मॉर्निग लिखा था उसने। नज़रें बदस्तूर मोबाइल पर जमी रहीं। प्रतीक्षारत। पहले मेसेज डेलिवर हुआ, पहले एक टिक का निशान, फिर दो नीली धारियां...।
मेसेज पढ़ लिया है उसने।
" क्या मनोविज्ञान पढ़ा है तुमने " इन पाँच शब्दों ने सैरंध्री के उबलते हुए मन को ठंडक प्रदान किया है।
"तुम्हारा चेहरा क्यों मुझे पहचाना सा लगता है?" धीरज ने फिर मेसेज लिखा उधर से कोई जबाव नहीं मिला।
सिर्फ सवालिया निशान
" ऐसा क्यों ??? "
धीरज घबरा गया। क्या कहे वो ,क्या जवाब दे ?
घबराहट के तहत ही धीरज मेट्रो के रुकते ही अपनी सीट छोड़ कर खड़ा हो गया। यों उसके ऑफिस आने में अभी तीन स्टेशन बाकी थे फिर भी न जाने क्यों उसे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो। फरवरी के महीने में भी सिर पर पसीने की बूंदे चुहचुहा आई। वह पास ही बने सीढि़यों पर दिल थाम कर बैठ गया।
किसी तरह उंगलियाँ मोबाईल पर चला कर ,
"पहले हम मिल कर एक दूसरे को देख और जान तो लें "
" तुम तो जानती ही हो मैं और तुम जिस उम्र में हैं वह अनुकूल परिस्थितियों में तो हवा का शीतल झोंका होती है तो प्रतिकूल परिस्थितियों में गरजता हुआ तूफान... " उफ्फ क्या अनर्गल लिखे जा रहा ... वह वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया कि बेसुध हो कर गिर पड़ा। फिर आगे क्या हुआ कुछ याद नहीं।

आज लगभग पाँच महीने लंबे अंतराल के बाद...

उसकी महीनों की घोर तंद्रा टूटने को है।रात में कब- किस पहर सपना देखा धीरज को कुछ याद नही।
पिछले दिनों का जो कुछ याद कर पा रहा वह एक सपने जैसा... है।
बीच का कितना कुछ छूट गया है। अतीत के पन्नों पर लिखी अनमिट इबारत की तरह सब अस्पष्ट और धुंधला सा है।
स्कूल के बाहर वाली गेट पर खड़ें वे सब जिनमें वह हाफपैंट वाली लड़की भी होती थी।
बस के इंतजार में खड़े रहते हुए बरगद के पेड़ के नीचे जितनी देर वे धूल में खेलते रहते उतनी देर सब भूल जाते कि अब वे बड़े हो गये हैं।
हाँ कभी-कभी सैरंध्री सामने से टीचर को आते देख ठिठक कर आगे बढ़ जाती थी। तब मैं भी बहुत छोटा था?
नहीं थोड़ा बड़ा किशोरावस्था में था। हम अपनी उम्र भूल अनोखे बंधन में बंधे खेलते रहते , बस खेलते रहते जब तक बस नहीं आ जाती।

शायद बरगद की एक ओर उसका घर होता था दूसरी ओर स्कूल।
उस दिन ... हाँ उस दिन क्या हुआ था ... ?
स्कूल से वापस लौटने में उसकी किताबें गिर गई थीं और इसके पहले कि वह झुक कर उठाता सैरंध्री ने जो छोटी थी और दुबली-पतली भी झुक गयी थी।
हाँ! याद आया तभी सामने से तेज गति वाली बस के चपेट में आती उसे बचाने के लिए धक्का देते वह खुद गिर पड़ा था उसका सर पत्थर से जा टकराया... आगे फिर कुछ याद नहीं।

धीरज को लगा जैसे वह महीनों से भटक रहा है।
कब से उस सपने वाली शाम में ही जी रहा है। लेकिन अभी तक कोई आदमी , कोई घर और बाबा नहीं दिखाई दे रहे हैं। अचानक उसे याद आया और वह लड़की उसे नाम नहीं याद आ रहा।
हाँ वह 'धूल वाली लड़की' कहाँ गई ? फिर से तंद्रा छाने लगी है उस पर। धीरज को लगा जैसे वह गहरी खाई में गिरा जा रहा है। सैरंध्री ने उसके शून्य प्रायः हो चले शरीर में हलचल देख उसके ठंडे हांथो को कस कर थाम अपनी हथेलियों से रगड़ने लगी है।
हाँ वो व्हाट्स्ऐप के मेसेज वाली लड़की सैरंध्री ही धीरज के अचेतन मन में बसी 'धूल वाली लड़की' है।
जिसने धीरज के होश में आने का लम्बा इन्तजार किया है। उसके प्रेममय स्पर्श इस वक्त धीरज के लिए दवाओं से बढ़कर दुआओं का काम कर रही है।
वह आश्वस्त होता जा रहा है।
उसने फिर दिमाग पर जोर डाला।
"कौन है यह लड़की ?
इसका नाम क्या है ?
कहाँ देखा है इसे सपने में तो नहीं ?"

"यह तो बिल्कुल पहचानी हुई सी लग रही है तो क्या यह वही 'धूल वाली लड़की है' ? "
" लेकिन वह तो फ्राक पहनती थी यह सलवार शमीज में है।
इसकी आंखें इतनी चचंल हैं शरीर इतना मासंल "
सोचते हुए उसने सैरंध्री का चेहरा अपने दोनों हांथों में थाम लिए ,
"अरे सुनो तुम अपना नाम तो बताओ तुम्हारा चेहरा तो बिल्कुल उस धूल वाली लड़की से मिलता है "
"अब आगे मैं कहाँ जाऊं ?
स्कूल से निकल कर ऑफिस तक तो पंहुच गया हूँ"
" यहाँ आए हुए मुझे काफी वक्त हो गया अब घर वापस कैसे जाऊँगा मेरी मदद करोगी ? "
सैरंध्री शर्म से सकुचा गयी। धीरज के सर को सहलाती हुई मीठे स्वर में बोली ,
" करूंगी ना मेरे हमदम मेरे नसीबा " ।
उसके लम्बे इन्तजार की घड़ियां भी तो खत्म होने को हैं।
वह गुनगुना उठी ,
"घर आया मेरा परदेशी "

सीमा वर्मा /स्वलिखित

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दादी की परी
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