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परिशुद्ध प्रेम - meera tewari (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

परिशुद्ध प्रेम

  • 200
  • 3 Min Read

राधा लजाए अखियन मुस्काये,
तरूवर पीछे छुप-छुप जाए,
देखो मन ही मन शरमाए।
जाने राधा मींचूँगी नयना,
तुम ही तुम हो समाए।
वृंदावन की कुञ्ज गलिन में गिरिधर,
राधा-राधा शोर मचाए।
यमुना तट पर गोपियों संग ,
मोहन रास रचाए।
निधिवन में मुरलीधर,
बाँसुरी मधुर सुनाए।
मनिहारी रूप धर देखो गिरिधर,
राधा को कंगन पहिराए ।
कंकंण की धुन सुनकर कान्हा,
मंद-मंद मुस्काए ।
काली नाग का मर्दन कर नथैया,
कन्दुक लेकर आए।
माखन मिश्री सब गृह राखी,
खाए न कोई बिन तुम्हें चखाए
जाने सखियाँ फोड़ोगे मटकी,
फिर भी उसी राह से आएँ।
“शिंजनी” के अद्भुत प्रियतम,
शिंजनी के प्राणों में समाए।

मीरा शिंजनी

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