कविताअतुकांत कविता
*आँखें*
झुकी आँखें हया कहाती
ऊपर तके, दुआ कहाती
गर मिल जाए आँखें तो
दो धड़कनों को मिलाती
बिछड़े पी को याद करती
बारिश जैसी ये हैं बरसती
तारे दमकते आँखों में तो
खुशी का ये इजहार करती
दृष्टि ही सारी सृष्टि बनाती
अंतर्मन की कहानी दर्शाती
आइना दिल के भावों का ये
सच्चाई से रुबरू हैं कराती
सरला मेहता
इंदौर