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दिये तले अँधेरे - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

दिये तले अँधेरे

  • 87
  • 11 Min Read

किस लिए,
किसके लिए ?
आखिर किसके लिए?

हमने कल जलाये थे लाखों दिये
किसलिए, किसके लिए,
आखिर किसके लिए ?

राम की चरणरजकण से
होते क्षण-क्षण पावन
सरयू जल को स्वर्णिम
करते से मनभावन
आस्था पल-पल जगाते से
अनगिन दिये
खुद पूछ रहे हैं आज हमसे
किस लिए, किसके लिए?
आखिर किसके लिए?

राम की घर-वापसी का
एक अद्भुत अहसास लिये
लक्ष्मी के शुभ आगमन की,
मन में उमड़ी आस लिये
रामराज्य जैसी व्यवस्था की
स्वप्निल अभिलाष लिये

यह परंपरा है वसुंधरा
चैतन्य के हर सुमन की
फूटती है जैसे सरिता
भावविह्वल आंसुअन की

दीप तो फैला गये
दूर तक अपने उजियारे
पर जाने क्या कह गये
उनके नीचे सिमटे अंधियारे

हाँ, यह रोशनी का जश्न
छोड़ गया कुछ यक्ष-प्रश्न
जब कुछ गृहलक्ष्मी
और कुछ मासूम गौरीसुत
आ पहुंचे अंधियारे में
खोजने बिखरा सा कुछ

हाँ, बुझे दीप में शेष उस
तेल की कुछ बूंद में
पापी पेट के सवाल का
उससे उठे बवाल का
समाधान कुछ ढूँढने

टिमटिमाती आशा के
उस अक्षय पात्र में
एक दिन के अस्तित्व को
बरबस तलाशने

हाँ, दिये के तले अँधेरे
रोक रहे हैं ना जाने
कितने सवेरे

आंखों को चकाचौंध करता
सच को ढकता, एक ओट बनता
एक अर्द्धसत्य
कुछ कामयाब,
मशहूर और मगरूर सा
पर उसके साये में लुकता-
छुपता सा रहता है एक
कड़वा सच मजबूर सा
दबे और कुचले से
एक वज़ूद का

हाँ, एक कड़वा सच,
इस शोर शराबे से दबे-
घुटे एक सन्नाटे का
कंगाली में अक्सर होते
रहते गीले आटे का

भुखमरी, बेरोजगारी,
कमरतोड़ महंगाई का
उजले उजियारे संग चलती
एक काली परछाई का

जश्न यह सुहावना था
आनंद की प्रस्तावना सा
लेकिन इससे जुडा़ हुआ
हर प्रश्न कुछ डरावना था

जिससे अक्सर
हम सब बचकर
निकलना चाहते हैं
गिरती दीवार के साये से
हटकर निकलना चाहते हैं
बिलकुल अंधा-बहरा सा
बनकर खिसकना चाहते हैं

और लपेट लेते हैं
अपनी आँखों के इर्द-गिर्द
चुंधियाते से कुछ उजियारे
जिससे ओझल हो जाते हैं
इधर-उधर बिखरे अंधियारे

लक्ष्मी माँ है,
वात्सल्य है,
करुणा है
और माँ का मन तो सबसे
निर्बल और निर्धन
बच्चे के लिए धड़कता है
दीनदयाल राम का मन भी
उनके दुःख को देखकर
पल-पल तड़पता है

आओ, मिलकर दीप जलायें
कुछ ऐसे भी हम
हाँ, करें कुछ ऐसा ही हम
कुछ पल के ही लिए सही,
हर वंचित का दुःख कुछ तो
हो जाये कम

हाँ, वही तो बस सच्ची दीवाली होगी
जब हर एक घर-आंगन में खुशहाली होगी
हर उपवन में हरियाली होगी
हाँ, वही तो बस सच्ची दीवाली होगी

अगर नहीं तो ये दिये
फिर किस लिए?
किस लिए, किसके लिए ?
आखिर किसके लिए ?

द्वारा : सुधीर अधीर

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