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क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया

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  • 12 Min Read

( मेरी यह रचना किसी व्यक्ति पर नहीं, एक मानसिकता पर कटाक्ष करती है. एक ऐसी मानसिकता पर जो अपनी विफलताओं का ठीकरा दूसरों पर फोड़ती है. ये सब भाव कुछ उदाहरण हैं. संभवतः मैंने भी ऐसा अनेक बार किया हो. यदि कोई मेरी स्वस्थ आलोचना करे तो मैं उसका आभारी रहूँगा क्योंकि इससे मुझे सुधरने का अवसर मिलेगा )

मैं आया था,
अच्छे दिन का वादा करके
वादा ही नहीं, इरादा भी था
इस बडे़ लक्ष्य की ओर
निशाना साधा भी था
मगर क्या करूँ,
बीच में नेहरू आ गया

मैने किया था पंद्रह लाख का ड्रामा
इससे पहले कि पहनाऊँ
मैं इसको अमली जामा
हर कदम बीच में डगमगा गया
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया

मैं तो देने आया था
दस करोड़ रोजगार
मगर प्लान सब हो गया
ना जाने कैसे बेकार
और कर दिया मैंने
चार करोड़ को बेरोजगार
और "पकौड़े" को बनाया
सबसे अच्छा व्यापार
और "भगौडे़"को बनाया
सबसे बढिया कारोबार
अब मांगता आर बी आई से
बार बार उधार
आपको तो पता ही है,
सब कैसे गड़बडा़ गया
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया

मैं तो लेने गया था
बच्चों का प्यारा चंदा मामा
मगर किसी ने बीच में ही
मेरा रास्ता आकर थामा
चाँद मेरी मुठ्ठी में आते-आते
दूर फिसलकर चला गया
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया

गंगा ने मुझे बुलाया था
मैं दौडा़-दौड़ा आया था
मै तो करने ही वाला था
उसको साफ
मगर कुपित गंगा मुझको
कर ना पाई शायद माफ
बीच सीढ़ियों पर ही
कदम लड़खडा़ गया
मेरे और गंगा के बीच में
माँ को भड़काने
वो नास्तिक नेहरू आ गया

मैंने काला धन लाने को
देश को लाइन में लगवाया
पूरे पचास दिन तक सबको
भूखे पेट भजन कराया
उस लाइन में तो मेरी
बूढ़ी माँ भी शामिल थी
छुपी हुई थी इस कोशिश में
एक जज़्बाती मंजिल थी
मगर ना जाने कैसे उस पर
रंग गुलाबी छा गया
सी सी कैमरे के सामने
कोट पर फिर गुलाब टाँककर
नेहरू आ गया

मैंने बापू का चश्मा, चरखा
और जन्मदिन अपनाया
मगर ना जाने क्यूँ भक्तों ने
एक हत्यारे का यश गाया
मै जानता हूँ,
किसने उनको बहकाया
मेरे और बापू के बीच में
ना जाने कब, क्यूँ, किधर से
नेहरू आ गया

मैंने तो मन की बातें करके
सबके मन को बहलाया
और ये अंदाज मेरा
सबको बहुत पसंद आया
फिर ना जाने क्यूँ बनकर
पापी पेट का सवाल
रोजी, रोटी, कपड़ा, मकान
देशहित से सबका ध्यान भटकाने
पाकिस्तान की राह को आसान बनाने
हर बार की तरह, इस बार भी
नेहरू आ गया


मैने तो कर डाला था
वोट का पूरा बंदरबाँट
राष्ट्रहित के नाम पर
दिया सभी को बाँट
सारे दाग मिटाने को
माँ का आँचल दिया काट
इस चीरहरण को रोकने
लेकर पैगाम एकता का,
नेहरू आ गया
क्या करूँ, हर बार मेरे
राष्ट्रहित के रास्ते में
मेरा वो चिर शत्रु
नेहरू आ गया

द्वारा: सुधीर अधीर

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