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बच्चा - Pratik Prabhakar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बच्चा

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एक बच्चा , मन का सच्चा
निकला साइकिल से अपने
पैडल पर मारे पैर
लगाता जोड़
सोच रहा खरीदेगा कुछ
इस बार मेले में
ढोल बजाता बन्दर
या भालू भारी भरकम
या मिठाई , सोनपापड़ी
चाट पकौड़े या फिर समोसे
या ले देगा बहन को
चॉकलेट
जमा किये पैसे से
सोच यही बढ़ता आगे
थोड़ा सोया थोड़ा जागे
उफ्फ, उसने ब्रेक दवाया
पर खुद को रोक न पाया
एक छोटी मुर्गी आयी आगे
चढ़ा साइकिल का एक पहिया
उसपर
बच्चे ने मुर्गी को उठाया
सोचा अब क्या करूँ भाया
ले चलता ,होता इलाज जहाँ पर
पर पैसे भी लगते वहां पर
सारी जमा राशि ले
बच्चा पहुँच गया अस्पताल
बोला डॉक्टर से वो घबराया
मेरी मुर्गी को देखो
एक हाँथ में मुर्गी उसके
एक हाँथ में पैसे
डॉक्टर मुस्काया
बोला बच्चे मुर्गी ठीक
बच्चा ख़ुशी से चहका
रोम रोम पुलकित हो महका।

प्रेरित - मिजोरम के एक बच्चे से जिसकी ये कहानी है।

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