कवितालयबद्ध कविता
गोरा रंग
सबका चहेता गोरा रंग
भरमाता, भटकाता सा
आँखों को चुँधियाता सा
मृगतृष्णा सा गोरा रंग
कंचन मृग बन तरसाता सा
एक तृष्णा सा गोरा रंग
मगर इसे कुछ और भी
मादक बनाने को
मोहक बनाकर
हर मन को
पल-पल लुभाने को
चाहिए, ना जाने क्यों,
काले बाल, काली भौंह,
नजर का काला टीका,
काला काजल, काला तिल
हाँ, ये सारे के सारे मिल
गोरे को कुछ और
उजला सा बनाते हैं
हाँ, जीवन में भी
काला-काला सा ही कुछ
उजले को कुछ और
उजला सा बनाते हैं
अगर नहीं हो तो काला तो
फिर शायद ना उजले रंग का
उजला यूँ उजाला हो
रजनी बिना
ना रूप उषा का
यूँ मतवाला हो
हर गोरी गोपी का सपना
हर गोरी राधा का अपना
एक काला
बंसी वाला ही
होता है
अगर फूल है रूप तो फिर
मन का भँवरा तो
काला ही
होता है
इस काले भँवरॆ से तो
अस्तित्व फूल का
और निराला ही होता है
अगर ना हो काला तो यह
रंगभेदी श्वेत वर्ण
एक कफ़न ही होता है
हाँ, जैसा भी हो,
गोरा-काला,
सीधा-सादा या निराला
एक दिन तो जलकर आखिर
सिर्फ भस्म ही होता है
या फिर मिट्टी बन,
फिर मिट्टी में मिलने को
आखिर दफन ही होता है
चल एक डगर,
बन हमसफ़र
खेल- खेलकर
आँखमिचौली,
दो रंगों की एक रंगोली
रचता हर एक
सुख-दुःख होता है
हाँ, बस सुख ही
सब कुछ नहीं
दुःख-कंटक बिच
खिले फूल सा
सुख ही एक
सच्चा सुख होता है
यह जीवन पल-पल
कल, आज और कल
रात-दिन और धूप- छाँव सा
गोरा-काला होता है
हाँ, इनके संगम से ही
जीवन एक चुनौती बन
अद्भुत निराला होता है
अंधियारे के बाद उजेरा
नये दिवस का नया सबेरा
खुशनुमा अहसासों का
अद्भुत बसेरा
इतना मतवाला होता है
जीवन का सबसे शाश्वत सत्य,
परमसत्य सा परमतथ्य
एक सफेद से आवरण में
दबा-ढका जीवन का सत्य
मृत्यु के चेहरे सा काला होता है
हाँ, शिव-मंगल और
महाकाल विकराल,
अर्द्धनारीश्वर सा सच
श्याम-श्वेत बनकर ही
पूरा होता है
रहते एक दूजे के संग
शुक्ल-कृष्ण, ये दोनों रंग
अभिन्न एक दूजे के अंग
जीवन इनके बिना
अधूरा होता है
द्वारा : सुधीर अधीर