कविताअतुकांत कविता
निर्धारित विषय " अभी ना जाओ छोड़ कर " पर आधारित रचना।
#शीर्षक
" अभी-अभी " 🍁🍁
न जाओ तुम अभी-अभी छोड़
कर यूँ ही कंही, मीठा सा जख्म
उभरा है अभी कोई !!
हुई कहाँ पूरी अभी जुस्तजू ।
ले उठी अंगड़ाइयाँ तमन्नाओं
से भरे दिल की।
हैं अभी किस्से नये होने तो दे
इन्हें जंवाँ।
अभी तो है बसा मेरे नये
सपनों का संसार। अधखुली
उनींदी सी नयनों में ओ
मेरे हमराज !!
अभी ना है छलका तेरे होठों से
दरकता हुआ शोला कोई मेरे
हमनवाज़ !!
अभी तो हैं अहसासों के
सिलसिले नये-नये। होने तो दो
ख़ता कोई!!
ये कैसी गर्म-नर्म सी
आ रही है सदाएं तेरी गलियों से
बहकी-बहकी!!
ना जाओ तुम एक जख्म सा उभरा
है अभी-अभी...
स्वरचित / सीमा वर्मा