कवितानज़्म
नज़दीक होकर भी
अब तो घुटन सी होने लगी है
अब तो साथ होकर भी हर पल दम सा घुटने लगा है
इतनी दूरियों के पीछे अब तो
तेरे मेरे दरमियान बचा क्या है
नज़दीक होकर भी
जिन खुशियों को तेरे संग तराशने निकलें थे हम
अब तो उन खुशियों का भी ठिकाना ना रहा
नज़दीक होकर भी
हर पल दुआओं में सबसे पहले तुम ही आते थे
अब तो लगता है दुआओं का भी असर सा ना रहा है
जिस दिल में हर पल तेरी
फ़िक्र सी रहती थी अब तो लगता है
उस दिल ने धड़कना भी छोड़ सा दिया है
जिन होठों पर हर पल मुस्कुराहट सी रहती थी
उन होठों पर अब तो चुपी के ताले से लग गये है
नज़दीक होकर भी
नज़दीक होकर भी दूर दूर तक तेरे मेरे बीच दूरियां ही
दूरियां सी नज़र आतीं हैं
नज़दीक होकर भी
__prabha Issar