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#शीर्षक
"नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 🍁🍁
वक्त भी अजीब चीज होती है, जहाँ हर दर्द , हर गम वक्त के साथ कम होता जाता है।
यह पहली बार नहीं हुआ था और ना आखिरी बार जब अपनी मंजिल तलाशती और राह खोती मिनी मुसीबत में फँसी हो। लेकिन हर बार कभी दादी-ममा, और कभी राहुल-तुषार सर ने उसकी मदद की है।
मिनी भी सब कुछ भूल कर आगे बढ़ गयी। समय जैसे पंख लगा कर दौड़ रहा है...
साल दर साल बीतते चले गये... जिंदगी पटरी बदलती चली जा रही है। अपनी प्रतिभा के बल पर मिनी ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया है और अपनी विचित्र मानसिक दशा से निबटती हुई सफल और होनहार डॉक्टर बन सकी है।
काफी जटिल से जटिल सर्जरी करनी हो तो एकमात्र विकल्प ' डॉ. प्रियंका गोस्वामी' का नाम है।
लेकिन उसकी ममा आज भी उसे लेकर उतनी ही परेशान रहती हैं,
"अब शादी कर ले क्या मैं हर समय बैठी रंहूगी मिनी तेरे पास ही मुझे भी तो निश्चिंत होना है",
" तेरी पसंद कोई नहीं तो कह मैं ढ़ूढ़ती हूँ आखिर किसी को तो भगवान् ने तेरे लिए गढ़ा होगा " और मिनी चुपचाप टुकुर-टुकुर उनका मुँह देखती रहती है कुछ बोलती नहीं है,
"अब कैसे बताउं मैं ममा से अपना हाले दिल। खून का एक थक्का सा जम जाता है मेरी नसों मे शादी के नाम पर ही"
"सिर्फ़ ममा ही नहीं सारे कहते हैं शादी बहुत जरूरी चीज है। अगर ना हो तो औरत की जिंदगी अधूरी रह जाती है"
"लेकिन कोई यह नहीं बताता मुझे कि जब अपना मन ही रीता हो तो कैसे किसी का स्वागत कर संकू , काश कोई बता पाता... नजर के सामने जो छवि एक पल के लिए आ जाती है उसे कहाँ ढू़ढूं?
तुषार सर के प्रति उसकी अपनी बहकी हुई भावना आज भी उसके कंधे पर बोझ के समान लादे हुए उसे
जिंदगी बेहतर तो लगती है पर परफेक्ट नहीं है।
उम्र के छती्सवें वसंत में अब उसे मौसम
महसूस होने लगा है और उनका बदलना भी।
राहुल जिसे वो भ्रम मात्र समझती थी उसे शिद्दत से याद आता है। काश गुजरा समय लौट कर आ जाता तो उसके साथ थोड़ा भटक लेती, थोड़ा बिगड़ लेती।
यही कुछ दिमाग में चल रहा है जब वह मरीजों को जल्दी निपटाती हुई सोच रही है ,
"चलो आज ममा की सुन कर उन्हें खुश कर देती हूँ तभी सामने रखे पुरजे पर जाना पहचाना नाम देख भ्रम की दुनिया से निकल हकीकत की दुनिया में आ गई 'लेफ्टिनेंट कंमाडर 'सौरभ शर्मा '
रोग -- दिल की बीमारी पढ़ कर मुस्कुरा दी "
उसने बुलाने वाली घंटी पर अपने कांपते हाथ रख दिए।
थोड़ी ही देर में जिस शख्स ने कमरे के पर्दे को खिसका कर प्रवेश किया उसे देख मिनी के दिल ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया है।
सामने हकीकत की धूप में साक्षात लेफ्टिनेंट कंमाडर 'सौरभ शर्मा' अपने एक हाथ बैसाखी पर रखे विराजमान है। उसकी आंखें खुली की खुली रह गयीं।
फिर भी हिम्मत कर उसे संभालने के लिए उठ खड़ी हुई,
" सौरभ " तुम ?
वही चिरपरिचित आवाज
" हाँ मिनी !! तुमने तो मुझे भुला ही दिया ये तो तुम्हारी ममा ने मुझे भीड़ में से ढ़ूंढ़ निकाला है।
अब और नहीं, मैं इंतजार करते-करते थक चुका हूँ बस गनीमत समझो कि तुम्हारी सदाएं मेरे साथ थीं। दुष्मन की गोली सिर्फ़ पैरों में अटक कर रह गयी शायद तुम्हारा साथ अभी लिखा था" राहुल अपनी रौ में बहा चला जा रहा है।
मिनी को भी अपनेपन का अहसास हो रहा है।
अपने किए पर वह रुआंसी हो रही है। इस भूल की ही सजा उसे मिली है कि उसका आँचल आज भी खाली है।
वह जैसे सालों बाद अपने-आप से मिली।
गहरे अंतर्मन से सौरभ को देख कर संतुष्ट हो रही मिनी को अचानक उसके मिलने से नयी जान मिल गयी है,
" आई एम सॉरी सौरभ"
बस इतना ही कह पाई मिनी वाकई शर्मिंदा है।
अब जब उन दो दिलों के दर्द-उदासियाँ, सपने- जिंदगी एक सी हैं तो दोस्ती के पार जाना ही होगा।
दोनों ने एक दूसरे की सुनी, लगा उनका दर्द उनकी कठिनाई अलग कहाँ हैं।
मिनी उठ कर सौरभ के पास आ गयी।
सौरभ ने उसे हांथों से बाँध धीरे से अपने होठ उसके शीतल होठों पर रख दिए हैं। मिनी की आंखें बंद हो गयीं।
सामने दीवार पर लगी दादी की तस्वीर से अपनी नन्ही मिनी पर नेह की बारिश हो रही है।
सिस्टर के अ...हः-अ...हः की आवाज सुन मिनी परे हट गयी।
सौरभ फिर भी बोल उठा,
"अब कोई माफी नहीं मिलेगी तुम्हें एक मुद्दत से तुम्हें छूने की तमन्ना लिए दुष्मन की गोली भी झेल गया हूँ।
मिनी की आंख से झरझर आंसू बह रहे हैं। उसने अपनी दोनों बांहें सौरभ के गले में डाल कर भरपूर चुंबन उसके होठों पर रख दिए।
दरवाजा खोल ममा हँसती हुई ... अंदर आ गयीं,
" बोल मेरी डॉक्टर साहिबा कैसी लगी मेरी सरप्राइज "
मिनी भाग कर ममा के गले लग गयी ।
समाप्त...
सीमा वर्मा