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" नन्हीं मिनी की रुमानी दुनियां 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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" नन्हीं मिनी की रुमानी दुनियां 💐💐

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लंबी कहानी ...अंक छह
" नन्ही की रुमानी दुनिया " 💐💐
मिनी की ममा ने जब-तब मिनी को अपने ही खयालों में डूबा देख उस दिन पूछ बैठीं ,
" क्या बात है मिनी तू आजकल ज्यादा ही चुप रहती है तेरी पढ़ाई तो ठीक जा रही है ना ?
"देख तेरी दादी का सपना तुझे ही पूरा करना है मुझे पूरा विश्वास है वो जहाँ भी होंगी तेरी ओर आशा भरी नजरों से देख रही होंगी "
उनकी सारी कही हुई बातें मिनी सुन तो रही थी पर 'गुन' भी पा रही थी क्या ?
कतई नहीं!!
ऐसा ही होता है शायद पहले प्यार में मिनी को बराबर यह लगता है कि उसके और सर के बीच जरुर कुछ ऐसा है जो खास है।
वह शिद्दत से चाहती है बस एक बार अकेले में मिल जाएं बात करने को तो वह अपनी सारी विश पूरी कर ले।
एक हूक सी उठती है उसके मन में सिर्फ एक बार मिलने से क्या होगा।
आज सर के साथ ही उसकी एक्सट्रा क्लास है इस ख़याल मात्र से ही उसे अंदर तक गुदगुदी महसूस हुई।

क्लास खत्म हुई सब बच्चे एक एक करके क्लास से निकल गये मिनी ने भी अपना बैग उठाया और बहकते हुए कदमों से धीरे-धीरे चलती हुई आगे बढ़ने लगी जहाँ सर रजिस्टर संभाल रहे हैं।
अपनी पतली, पतली अठखेलियाँ करती उंगलियों से सर के हाथ थाम गुलाबी लिफाफे वाली चिठ्ठी पकड़ा दी।
हाथ छूते ही उसके पेट में गुदगुदी हुई खून जम सा गया वह सर के ख़यालों में ही लिपटी सुधबुध खोकर सर से सच में लिपट गयी।
" क्या कर रही हो ? मृणाल, मृणाल हटो परे हटो , होश में तो हो ?
कहते हुए उसे सर ने एकदम से अपने से परे कर दिया।
अचानक कान में गये इस आवाज से मिनी की तंद्रा जैसे टूट गयी।
" ये क्या कर रही हो तुम होश में नहीं हो क्या " ?
मिनी के चेहरे का रंग उड़ गया मानों जबान कट गयी हो वह हक्का-बक्का रह गयी। कोई भी दलील तर्क और वजह इस समय बेमानी हैं। वह जल्दी से मुड़ी और क्लास रूम के बाहर हो गयी।
उसके पीछे ही तुषार सर भी निकल गये,
" रुको मृणाल मेरी बात ध्यान से सुनो ,
मुझे तुमसे बहुत उम्मीदें है। ये तुम्हारा बहुत कीमती समय है तुम्हारे जीवन का इन सब बेकार की बातो में जाया करोगी ? "
" जाओ मन शांत करो पढ़ाई में ध्यान लगाओ "

मिनी शुरु से ऐसी नहीं है। यों ऐसा भी नहीं है कि वह कभी गलतियां ही नहीं करती गुस्सा तो उसकी नाक पर हर वक्त रहता था। तभी तो उसकी ममा अक्सर कहती हैं,
" इतना गुस्सा, इतनी नाराजगी ठीक नहीं मिनी, मानों सारी दुनिया का गुरुर तुझमें ही समा गया है "

खैर आइए देखतें हैं वक्त के पिटारे में उसके लिए क्या रखा है।

मैं तुषार सर के व्यवहार पर एक पल को सन्न हो तेजी से चलती हुई बस स्टॉप तक पंहुच चुकी थी।
मिनी खुद ही अपनी इस 'तथाकथित प्रेम' के नाम पर कर बैठी बचकानी हरकत पर हैरान !!
"सोच के मकड़जाल में फंस सूखे पत्तों की तरह काँप रही थी"
एक पल को लगा ममा को सब कुछ बता दे लेकिन क्या वो इसे बर्दाश्त कर पाएंगी यह सोच कर चुप रही।
तभी पिंकी का ख़याल दिमाग में कौंधा लेकिन नहीं !!
तिरस्कृत सा महसूस कर रही मिनी बर्फ की तरह ठंडी हो गयी थी।
" मेरा पूरा आस्तित्व ही मुझे नकार रहा था इस वक्त किसी का साथ किसी की 'ऐडवाइस' मुझ पर शायद विपरीत और 'नाकारात्मक' असर डालती "।
"सर के लिए मेरा आकर्षण या वो जो कुछ भी था सही या गलत ?
इस बात का फैसला जब मैं नहीं कर पाई तो और कौन करता ? "
लिहाजा मैं जीजान से खुद को समेटने में जुट गयी।
इस घटना के बाद मेरा मन तो स्कूल में
पैर रखने का भी नहीं था,
" अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर जो गलतियां मैं कर बैठी थी उसके बाद सर से नजरें कैसे मिला पाऊंगी ? "
लेकिन ममा... , ममा को कैसे समझा पाउंगी स्कूल क्यों नहीं जाना चाहती "
पी टी एम भी नजदीक आ गया था जिसमें मेरे जाने से इंकार कर देनें पर ममा अकेली ही गयीं
स्कूल से वापस लौट कर ममा बिल्कुल शांत थीं मेरे लाख कुरेदने पर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा।
जब मैंने घुमाफिरा कर तुषार सर के बारे में जानने की कोशिश की तो वे हँस कर टाल गयीं ।
"इस सबके करीब एक हफ्ते तक मेरा खुद से ही सवाल जबाब चलता रहा
भंयकर उहापोह से थक चुकी मैं आखिर में जब अगली सुबह उठकर स्कूल जाने को तैयार हो रही थी।
" ममा ने मुझे मानों आश्वस्त करते हुए बहुत बिग वाला हग देकर मेरे गाल थपथपा... दिए मैं भी उनसे कस कर चिपक... गयी।
बाहर निकल कर देखा तो पिंकी मेरा इंतजार कर रही थी। शायद ममा ने ही उसे फोन किया था ।
उसी से पता चला सौरभ के ' एन. डी. ए'
में सेलेक्शन हो जाने का।
इस खबर से पिंकी जहाँ थोड़ी परेशान लगी। वहीं सौरभ के सुरक्षित होते भविष्य का सुन मैं मन ही मन बहुत खुश हो गयी पता नहीं क्यों बहुत अच्छा लगा कि ,
"चलो हम तिगड़ी " में से किसी एक की तो नैय्या पार लगी।
तब तक बस स्कूल के पास पंहुच गयी थी। इस बार सर से मिलकर उनसे माफी मांगने का सोच कर बस से उतरने के बाद ही मेरी बेचैन और शर्मिंदा नजरें सर को ढ़ूढ़ने में लग गयीं लेकिन सर कंही नजर नहीं आ रहे थे।
मालूम करने पर पता चला सर का तबादला असम की राजधानी शिलॉन्ग हो गई है। सुन कर हैरान तो मैं बहुत हुई दिल थाम लिया फिर तुरंत ही यह सोच कर ईश्वर को धन्यवाद दी कि ,
" उनकी मर्जी में कुछ अच्छे ही होने के संकेत छिपे होगें। "
साथ ही अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त भी हो गयी थी।
" क्रमशः "
सीमा वर्मा /स्व रचित

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दादी की परी
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