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लंबी कहानी...अंक ५
#शीर्षक
"मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
मैं पिंकी और एक सौ आठ नंम्बर फ्लैट वाले शर्मा अंकलजी का बेटा सौरभ शर्मा हम तीनोँ एक साथ खेलते पढ़ते और ट्यूशन जाते बढ़ने लगे थे।
क्लाश बारहवीं की 'मृणाल गोस्वामी' आसमान की उंचाईयों को छूना चाहती थी। लेकिन मेरे ख़यालों में एक अजीब सा उलझापन जो मेरी भी समझ से परे था रहता। हर बात की इफ ऐन्ड बट्स से हो उसी पर खतम हो जाती। मुझपर कुछ भी बहुत जल्द हावी हो जाता इसी को ममा 'अल्हड़पन' कह कर टाल नहीं पातीं। वे अक्सर बोलतीं,
"खुद को बिना कहे कैसे जाहिर किया जाता है यह बखूबी पता है तुम्हें " मैं हँस कर उन्हें भी टाल दिया करती।
बाद के दिनों में दादी भी गुजर गयी थीं बुबु की शादी हो गई थी वे अपनी गृहस्थी को खूब सुंदरता से सजाने में जुट कर व्यस्त हो गई थीं चाचा भी अपनी कम्पीटीशन वगैरह की पढ़ाई में लगे रहते फिर मेरी कौन सुनता ?
कुल मिला कर अपनी डेली रुटीन से मुझे चिढ़ मचने लगी थी।
अक्सर पिंकी से कहा करती ,
" यार ये भी भला कोई जिंदगी है,
सुबह जागो तैयार हो कर स्कूल जाओ पढ़ो घर आ कर खाना खा कर फिर ट्यूशन जाओ "
"ना चैन ना सुकून जैसे हमारी कोई इच्छा ही नहीं है "
तभी दूर से सौरभ आता दिखाई दिया।
जिसे देख कर मिनी अक्सर नाकभौ सिकोड़ लेती है। वह सौरभ के प्रति जरा भी आकर्षित है।
लेकिन पिंकी के चेहरे पर सौरभ को देखते ही एक अलग तरह के भाव आ जाते हैं।
इस तरह से अगर देखें तो सौरभ का ध्यान मिनी पर पिंकी का ध्यान सौरभ पर है।
" बच गयी अपनी मिनी?"
अगर उसकी की बात करें तो उसका ध्यान कंही और ही है।
अब उसका ध्यान कहाँ है यह आपको बाद में पता लगेगा फिलहाल...
फाइनल इग्जाम शुरु होने वाले हैं तो सबों ने सिलेबस रिवीजन की तैयारी में जी जान से जुटे हुए थे।
मिनी इस तैयारी करने में कितनी बार अटकी है जिसमें सौरभ ने उसकी मदद की है पर मिनी उसे सिर्फ़ धन्यवाद करने के कुछ भी नहीं कहती योंभी उसे समझ में आने लगा है कि सौरभ का उसके प्रति आकर्षण अब प्रेम की सीमा को छूने लगा है और ये भी कि ,
"सौरभ उसके लिए कुछ भी कर सकता है " फिर भी... जहाँ तक ' प्यार' शब्द की समझ उसे है तो वह ' तुषार सर ' से करती है।
वैसे सौरव ने उसे अपने टूट कर प्यार करने वाले वर्ताब से मिनी के दिल में एक ' खासदोस्त'की जगह अवश्य बना ली है। जिससे वह प्यार तो नहीं करती हाँ जिसके भावनाओं की कद्र उसे है।
अब चलते हैं तुषार सर के पास जिनसे हम पहले मिल चुके हैं। इस बार मिनी ही की जु़बानी...
"मैंनें कितनी बार नोटिस किया है सर कई बार नजरें चुरा कर मुझे देखते हैं,
"हो सकता है यह मेरा भ्रम मात्र हो या ऐसा हो या ना हो पर फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो मुझमें उनके प्रति असहज करता है"
सच भी है यह उम्र ही ऐसी है जब इंसान चाँद पाने की चाहत में पागल हुआ जाता है।
"अब चाँद, तुषार सर आंखों के ख्वाब ही तो हैं मेरे लिए ऐसा ही कुछ होता होगा शायद पहले प्यार" में सोचती रहती है।
गोया कि कमसिन, कमउम्र मिनी अपने घर ,ममा ,आसपास के माहौल, हर कुछ यहाँ तक कि अपने साथियों तक से दूर होती चली जा रही है।
क्रमशः
स्वरचित /सीमा वर्मा