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" मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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" मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐

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लंबी कहानी... अंक १
#शीर्षक
" मिनी की रुमानी दुनिया"

यह कहानी अपनी नन्ही 'मिनी' की है। जिसका पूरा नाम ' मृणाल गोस्वामी' उसकी दादीमाँ ने बहुत प्यार से रखा था। कुछेक अठ्ठाइस-उन्तीस साल पहले जब बगुले जैसी झक सफेद साड़ी पहनी डॉक्टरनी ने गोलमटोल नर्म रूई के गोले जैसी गुड़िया को दादी की गोद में डाल दिया था। तब दादी ने मानों अपना कलेजा निकाल कर ही उसमें बसा दिया। आज मृणाल का हृदय उनमें बसता है।

अनायास ही दादी के मुँह से निकल गया था ,
"अहा... मेरी डॉक्टरनी पोती" दादी की यह आंकाक्षा कितनी बलवती थी। इस बात को आप यूँ समझ सकते हैं कि उस वक्त भी बिना तार के ही मिनी के दिमाग में जा बसी होगी। बहुत छुटपन से ही मिनी से जब कोई पूछता ,
" मिनी बड़ी हो कर क्या बनेगी ? झट से तोतली बोली में बोलती,
" दादी की डॉकतलनी बिटिया " दादी पूरे मन से उसकी बलैयां ले लिया करतीं।

यहाँ तक कि आज भी उसके 'हटिया' वाले बड़े से क्लिनिक में उसकी मरीज देखने वाली टेबल के ठीक उपर उसने अपनी प्यारी 'दादीमाँ' की ही आदमकद तस्वीर लगा रखी है।
दादी ने उसे इतना प्यार दिया है जितना अपने बच्चों को नहीं दिया है वो कहते हैं ना सूद मूल से प्यारा होता है बस वही बात यहाँ चरितार्थ होती दीख पड़ती है।
खैर...अब चलते हैं उसकी माँ 'चारूलता' के पास...
'गौतमबुद्ध मेडिकल कॉलेज' का उन्तीसवां दीक्षांत समारोह बहुत धूम-धड़ाके साथ आयोजित किया गया है।
आत्मविश्वास और बुद्धिमता के तेज से लबरेज़, स्टेज की झलमल करती रोशनी में डॉ.मृणाल का चेहरा अलग से चमक रहा है।
उसकी माँ चारूलता गर्व से फूली नहीं समा रही।
चारू ने चारो तरफ नजर घुमाई सभी की दृष्टि डॉ. मृणाल पर ही टिकी हुई है,
" आज कितनी खुशी का दिन है, मृणाल ने अपना लक्ष्य पा लिया है। "
"उसकी इस खुशी को मैं उसके तुषार सर के साथ बांटना चाहती हूँ "।
जिन्होंने तब सहज ही गुरु धर्म का पालन करते हुए अपने संतुलित व्यवहार से राह से भटकी किशोरी मृणाल को संभालने में मेरी मदद की थी।
"यदि उस नेक व्यक्ति ने मृणाल के बहकते कदम से मुझे अवगत न कराया होता तो ?"
चारू को वर्षों पहले की वह घटना याद आ गई...।
१२/ सितम्बर
आज मिनी की पी.टी.एम क्लास अटेंड करने उसके स्कूल गयी थी। सभी शिक्षिकाओं से मिलने के बाद मैथ्स के टीचर तुषार सर के पास गई। यों मैं उनसे अंजान नहीं थी।
मिनी के मुंह से उनकी तारीफ सुन कर भली-भाँति जानती थी।
वहाँ पंहुच कर शिक्षक की कुर्सी पर बैठे उस लम्बे सुदर्शन युवक को अपनी ही तरफ ध्यान से देखते हुए मैं सकुचा गई ,
" आप मृणाल की माता जी हैं ना?"
" हाँ"
कहते हुए मैंने दोनो हाथ जोड़ दिए।
"ठीक है,
कहते हुए उन्होंने एक सुंदर, गुलाबी, खुशबूदार लिफाफा पकड़ा दिया मुझे "।
" बात मृणाल से संबंधित और थोड़ी नाजुक है, इसे आप घर जा कर ही खोलिएगा " उनकी आवाज गंभीर थी।
" इसे मृणाल ने मुझे दिया है। हाँ आप मृणाल से इसका जिक्र मत करिएगा कि यह आप तक पंहुचा दिया गया है"।
फिर थोड़ा रुकते हुए,
"आपने मनोविज्ञान पढ़ा है? इस उम्र के बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है "
"उन्हें प्रेम और श्रद्धा के बीच का फर्क नहीं पता होने के कारण वे अपने शिक्षकों के साथ मानसिक लगाव को ही
प्रेम, ईश्क और मोहब्बत का नाम दे देते हैं "।
यह सुन कर मेरे चारो तरफ अंधकार छा गया। ऐसा लग रहा था मानों
मृणाल को उच्च शिक्षा दिलाने की मेरी समस्त महत्वाकांक्षाओं पर पानी फिर गया हो।
मेरे चेहरे पर झलक आए मनोभावों को परख कर तुरंत तुषार सर ने कहा,
" कृपया इसे अन्यथा न लें, अगर आप ही होश खो बैठेंगी तो सोचे फिर मृणाल का क्या होगा ?"।
उनकी हमदर्दी भरी वाणी सुन कर मेरे तो आंसू निकल आए।
" और हाँ कृपया मृणाल के इस कृतत्व को भयंकर अपराध के रूप में न लें "
" उसकी उम्र कच्ची है, इसलिए मैंने आपसे बात करना उचित समझा।"
" आप उसकी माँ हैं, उसके हृदय को अच्छी तरह समझ कर अभी भी परिस्थितियों को संभाल सकती हैं "।

मृणाल के इस बचपने से भरे कदम ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था। लेकिन फिर भी धैर्य से काम लेते हुए मैं मृणाल के हर क्रिया-कलाप पर ध्यान देने लगी।
साथ ही सर के सामने श्रद्धानवत् हो बीच-बीच में उनसे सलाह लेती रहती। जिसके फलस्वरूप ही मृणाल यहाँ तक पंहुच पाई है।
मैं आज अपनी तरफ से मृणाल की तमाम सफलता का श्रेय तुषार सर को देना चाह रही हूँ ।
" अगर समय रहते अपने गुरुधर्म का पालन करते हुए उन्होंने अपना सही उत्तरदायित्व न निभाया होता तो उसकी जिंदगी बदरंग हो चुकी होती और हम कंही के न रहते " ।
सर, आपने ही तो उसकी इस सफलता की आधारशिला रखी है। आप जहाँ कंही भी हैं। मेरी असीम ,अपार और अनंत शुभकामनाएं आपके और आपके पूरे परिवार के साथ हैं 🙏
क्रमशः

स्वरचित /सीमा वर्मा

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दादी की परी
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