कहानीलघुकथा
#शीर्षकः
" अभिनेत्री " 💐💐
" मैं सारी उम्र तन्हा ही रही हूँ। दुनिया मेरी उँचाइयों को देखती है। मुझे कहाँ पहचानती है सुधाकर ?"।
इतने सालों में यूँ तो मालिनी के दिल ने हलचल करना ही बंद कर दिया है।
बाहरी चकाचौंध भरी दुनिया में उसकी एक झलक पा लेने मात्र के लिए ललायित उमड़ती प्रशंसकों की दीवानी भीड़।
इधर घर में उसके अलावे सिर्फ़ उसकी अर्द्धव्यस्क उम्र की अपाहिज माँ। घर का सूनापन उसके मन पर भी छाने लगा है।
ऐसा कोई नहीं है जिससे वह अपने मन की बातों को बाँट पाती।
इस परिस्थिति में जब नौजवान सुधाकर ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया तब मालिनी फूट पड़ी,
" मेरे पास दौलत, शोहरत और इज्ज़त की कमी नहीं है। यह सब बहुतायत है, कमी है तो सच्ची मुहब्बत की "।
"मुझे तुम्हारी जरुरत है , उनचालीस बर्षीय मालिनी ने खुद को सुधाकर की मजबूत बांहों में ढ़ीला छोड़ दिया। "
जब सुधाकर ने अपनी बेपनाह मुहब्बत उस पर न्योछावर करनी शुरू ही की थी।
तब मालिनी ने भी आगे बढ़ने की सोच ली,
"वक्त निकला जा रहा है। सरपट भागा जा रहा है अब मुझे देर नहीं करनी चाहिए "।
"आज तक नये-पुराने कितने ही आए लेकिन किसी ने विवाह तक निभाने का प्रयास नहीं किया "
" सभी ने मुझे सोने के अंडे देने वाली मात्र भावना शून्य गुड़िया ही जाना है अब मैं भी थक चुकी हूँ" वह सोफे पर बैठ गयी।
दिन और रात थियेटर, शूटिंग, ड्रामा और रिहर्सल इन सब के चंगुल में फंसी मालिनी को अकेलापन सालने लगा है।
उसके बड़े से गुलाबी बंगलो में व्हीलचेयर पर बैठी उसकी अपाहिज माँ अकेली घूमती हुई दिन-रात उससे कहती रहती है,
" वक्त का हिसाब रखना मीलू कंही तुम्हारी जिंदगी ही ना डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन कर रह जाए "
आज भी मालिनी को सज-धज कर तैयार हो कर जाते देख माँ ने पूछ ही लिया ,
" अब किस प्रोजेक्ट पर चली मीलू ?"
खुशी के अतिरेक में मालिनी माँ को पहियों वाली कुर्सी पर ही गोल-गोल घुमाते हुए बोल उठी,
"माँ... मेरी प्या...री माँ..., 'सुधाकर' से मिलने।
" हम शादी करने जा रहे हैं माँ " कहती हुई लम्बे-चौड़े गलियारे को पार कर बाहर आ गयी।
मालिनी जानती है। सुधाकर भी औरों की तरह ही फ्रॉड हो सकता है फिर यह सोच कर कि ,
"अंजाने में तो बहुत गलती की है। इस बार जानबूझ कर ही सही विश्वास कर के देखती हूँ "।
अब तक ' मिस' ही बनी रह कर सुर्खियां बटोरने वाली मालिनी की 'मिसेज' कहलाने की दबी इच्छा जाग उठी है।
बरसात के दिन थे, बाहर लॉन में बरसाती ओढ़े कर्मचारियों के बच्चे उसके दिल में उथल-पुथल मचा रहे हैं।
चालक संतराम को सुधाकर के घर चलने को कह उसने पलकें मूंद सिर पीछे की ओर टिका लिए और मद्धिम सुर चलते गाने की धुन के साथ भावी जीवन के सपने बुनती चली।
"मेमसाब, साहब का घर आ गया " सुन कर चौंक उठी।
गाड़ी से उतर कर अपने लम्बे लहराते फैले आंचल को बेहद अदा से समेटती हुई आगे बढ़ गयी।
सुधाकर के घर का ज़ीना पार कर उसने तेजी से उपर के तल्ले की घंटी बजा दी है।
दरवाजा खुला एक अजनबी लड़की ने सिर निकाला।
"कौन ? "
"मैं मालिनी हूँ और आप? "
" मैं मिसेज सुधाकर"
"क्या? क्या मतलब? "
गुस्से ,शर्म और लज्जा से उसके पाँव कांपने लगे।
लड़की बहुत कम उम्र कोई उन्नीस की रही होगी,
" जी अभी पिछले हफ्ते ही हमारी शादी इतनी जल्दी में हुई कि सुधाकर किसी को खबर ही नहीं कर पाए"।
" आपका परिचय मिस साहिबा ? " वह मालिनी के सजे-धजे रूप और करीने से कटे हुए बालों को सराहनीय नजरों से देखती हुई पूछ बैठी,
" आज बहुत सर्दी है मैम, आइए अंदर आ जाइए " कहती हुई आसमान की ओर देखा।
ठीक उसी वक्त लगभग भावशून्य हो चुकी हताश मालिनी ने तेज हवा से बिखर गये अपने बालों को समेट एक बार फिर अपनी पंहुच से बाहर हो गये उस आधे-अधूरे चाँद को देख बुदबुदा उठी,
"दिन पूरी तरह डूब चुका है। रात खिलने को है आसमान पर अधूरा चाँद मुस्कुरा रहा है"।
" फिर कल सुबह होगी। एक और दिन...
एक और रात।
सच में न जाने कब से चल रहे इस आधे-अधूरे हकीकत और फ़सानों में वक्त का कोई हिसाब ही नहीं लग सका "
अजीब सी उदास मुस्कुराहट होठों पर तिर आई।
लड़की के गाल थपथपा कर मद्धिम गति से हौले-हौले ज़ीना उतर अपनी गाड़ी में बैठ गई चालक ने अदब से पूछा,
" कहाँ ले चलूँ मेमसाब ?"
जिंदगी के टूट चुके तारों से निकलने वाले बेढ़ंगे सुरों को साधने का भरसक प्रयत्न करती हुई ,
" भैया आज तो ऐसी जगह जहाँ मैं, मैं ना रहूँ और मुझे कोई पहचान ना पाए मुझे मन की शांति चाहिए "
अनुभवी चालक संतराम ने वृद्धाश्रम की ओर जाने वाली सड़क का रुख ले लिया।
स्वरचित /सीमा वर्मा