कविताअतुकांत कविता
इंसानों की दुनिया में
तुम जिसे अपना बता रही थी
वो कभी तुम्हारा था ही नही
उस पर बंदिश लगी है अपनी ही मुक्ति की
और तुम हिस्सा हो ही नहीं
उसके निकेतन मन की
उसकी आदतों की
उसके समाज की
न तुम शामिल हो कहीं
उसके जज्बातों में
उसके अपनों में
उसके सपनों में
तुम मांग सको उससे
अपना साथ देने एक वादा
इसका तुम्हें अधिकार नही
तुम जता सको उस पर अपना पन
ये भी तो उसे स्वीकार नही
अब भी तुम साथ चलती हो
तो चलो लेकिन ...
उफ़ तक करने की तुम पात्र नही
~सोभित ठाकरे