कवितालयबद्ध कविता
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
हर लमहे की सीपी में
अहसासों का मोती बन
ढलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ-साथ चलती रही
कुछ डगर
बन हमसफर,
कुछ लमहों में ढल
कुछ जज़बात
ले, कुछ लमहों की,
संग सौगात
साथ-साथ चलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
कुछ मैं उनके,
कुछ वे अपने
साँचे में ढलती रही
सन्नाटे में तैरता सा
सरगम बन,
कुछ शूल संग
कुछ फूल बन
फूलती-फलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
जहाँ तक जाती नजर
आडी़-टेढी़ सी हर डगर
हो विस्मृति के
कोहरे में ओझल
दर्द की हर गर्द की
परतों से पल-पल बोझल,
और कभी
बन एक खुशबू ,
एक जुस्तजू ,
बन आहट
एक आरजू,
हर अँधियारे से
उजियारे ले
बनकर जुगनू ,
अहसास कोई
भरती गयी
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
अनायास ही आकर जब-तब
दबे पाँव आ देकर दस्तक
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके
जबरन आकर लुकते-छुपते
मन को बरबस छलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
और बन अल्हड़ सहेली,
अजब-गजब सी अठखेली
अनसुलझी सी एक पहेली,
गिरगिट जैसी रंग पल-पल
जाने क्यूँ , कैसे बदलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
दिन, महीने,
या बन हफ्ता
जिंदगी रफ्ता-रफ्ता
उम्र की बंद मुठ्ठी से
बन अनजानी,
मुँह फेरती
बनकर सूखी रेत सी
लमहा-लमहा,
तनहा-तनहा,
क्षण-क्षण,
कण-कण,
बस फिसलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
घटती साँसों की
उल्टी गिनती बन
बुझती सी आसों की
चुकती सी बत्ती बन
कभी झिलमिल
कभी टिमटिम
दीप बन जलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
द्वारा : सुधीर अधीर