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चाँद का टुकड़ा - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

चाँद का टुकड़ा

  • 190
  • 6 Min Read

आज है शुभ करवा चौथ
आज रखने को प्रज्ज्वलित
दांपत्य-प्रेम की महाजोत
सुबह से ही भूखा है
अपना चाँद का टुकडा़ 

और हम मशगूल हैं
या यह कहो, मजबूर हैं
या फिर समझो, 
हम बने हुए मजदूर हैं
बेगारी के
बेचारी से
लाचारी से

खोजने को शाम से ही
धरती का वो मुकम्मल टुकडा़
दिख सके हमको जहाँ से
वो चाँद का टुकडा़

करवाचौथ का वो 
चाँद का टुकडा़
जिसे देखकर खिल सके
अपना चाँद का टुकडा़

कर सके शुभ अर्घ्य अर्पण
दमक उठे मन का दर्पण
जिससे हो संपन्न 
चंद्रदेव-पूजा
और फिर हो सके शुरू
अपने चाँद की 
पेट-पूजा

कहीं कोई बादल आकर
ढक ना ले वो आकाश के 
चाँद का टुकडा़
और ना हो जाये
भूख से धूमिल
अपना चाँद का टुकडा़

इस तनाव में ना कभी
बन जाये सिर अपना ही
केशहीन, चाँद का टुकड़ा

इसीलिए बस
खोज रहे हम
शाम से ही
धरती का वो टुकडा़
दे दर्शन आकर जहाँ
चौथ का चाँद का टुकड़ा

सबके घर-आँगन को आकर
चहकाये और महकाये
करवा चौथ के मंगलमय
चाँद का टुकडा़

आये लेकर करवा चौथ
हर किसी के आँगन में
खुशियों के अनगिन
चाँद-सितारे,
खुशनुमा और
खूबसूरत से नजारे,
दिन दूनी और रात चौगुनी,
घर की बगिया में बहारें
और दूर हो हर किसी के
मन का हर एक दुखडां

द्वारा : सुधीर अधीर

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