कवितागीत
#शीर्षक
"ऋतु प्रभाव " 💐💐
शरद ऋतु में जब सांझ की स्वर्णिम
रोशनी आकाश में चमचमाते
चाँद के बीच उम्मीदों वाली
सपनों की नाव
करती हैं सरगोशियां
चमकते जुगनुओ के साथ
उस गुलमोहर के पेड़ के नीचे
जिसे लगाया है। हमने साथ-साथ
खखड़ी भींगती रहती हूँ अनवरत
मोह
के धागे से बंधी मैं।
शीत की गुनगुनी धूप से सजी
दोपहरी , लॉन की हरी-भरी
क्यारियों वाली घास पर देखती
हूँ, जब गौरये के नन्हें बच्चे को
मन भर जाता अनोखे उजास से
उनकी चीं-चीं से वे मुझे लगते
बेहद अपने से जीवन-संगीत लिए ।
गर्मियों की अलस दोपहरिया में
घर से दूर तक बिछी पगडंडियों
के दोनों ओर खड़े लम्बे दरख्तो
से गिरे सूखे पत्तों से आती चुर
-चुर की आवाज, मन की चंचल
गिलहरियां जैसे पहचान उन्हें,
करती हैं उनसे गहरे संवाद...।
बारिशों की भींगी सी दोपहरी में
जब नभ से गिरी फुहार अंजुरी
में भर कर उछालती हूँ, जी भर
कर... छुम-छना-छन-छन ज्यों
मेरे जीवन की हर सुगंध में रच
बस गई है तुम्हारी सुगंध त्यों...
एवं जीवित रहेंगी अनंत काल
तक 'बेशक' धड़कनों के साथ...।
सीमा वर्मा / स्वरचित