कहानीलघुकथा
*मम्मा तुम्हारी*
" पापा, आज मेरी लम्बी दौड़ का फायनल है, आप वक़्त पर पहुँच जाना। " दस वर्षीय बेटे शुभ ने श्रीधर को याद दिलाया। श्रीधर मीटिंग के कारण जा नहीं पाएँगे।
कौशल्या से दूसरा विवाह बेटे के लिए ही किया था कि उसे माँ मिल जाएगी। लेकिन शुभ को माँ का प्यार नसीब नहीं हुआ। कौशल्या को अपनी ही सन्तान की चाह है।
श्रीधर के ऑफिस जाने पर लिहाज़ रखने हेतु कौशल्या भी स्कूल पहुँच जाती है। वह दर्शक दीर्घा में बैठी है। दौड़ प्रारम्भ होते ही सब अपने अपने बच्चों का नाम लेकर चीयर अप करते हैं। शुभ की नज़रे ढूंढ रही है पापा को।उसके कान तरस रहे हैं अपना नाम सुनने को।
वह पिछड़ने लगता है। तभी वह 'शुभ शुभ बक अप' सुन कर तेज़ी से दौड़कर प्रथम आ जाता है। ट्रॉफी देने के लिए अभिभावक को बुलाया जाता है। मम्मा को देख वह लिपट कर रोने लगता है। उसे सुनाई देता है, " रोओ नहीं शुभ, मैं तुम्हारी कौशल्या मम्मा। "
सरला मेहता
इंदौर