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नरक चतुर्दशी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

नरक चतुर्दशी

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( आप सबको छोटी दीपावली या नरकचतुर्दशी की शुभकामनायें. दीपावली के शुभ नाम के साथ नरक शब्द जोड़ना कुछ अटपटा नहीं लगता आपको ? आइये आज हम सब इस विरोधाभास के मूल कारण को जानते और समझते हैं )

इस दिन भगवान कृष्ण और सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था. इसके जन्म के विषय में जानने के लिए अतीत में बहुत पीछे झाँककर देखना होगा. नारायण के दो पार्षद उद्दंडता के कारण सनकादि मुनियों द्वारा अभिशप्त होकर तीन जन्म तक राक्षस बनते हैं. पहले हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में क्रमशः भगवान के वराह और नृसिंह रूप द्वारा, कुंभकर्ण और रावण बनकर राम के हाथों और दंतवक्र और शिशुपाल बनकर कृष्ण के हाथों मुक्ति पाते हैं.

हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिया. आज भी हम सबके मन से जन्मी अतिदोहन की प्रवृत्ति के फलस्वरूप आज का यह भूमंडलीय तपन भी ऐसा ही प्रयास कर रहा है. भगवान ने वराह रूप धारण करके धरती माँ को अपनी ठुड्डी के द्वारा उठाकर बाहर निकाला. ब्रह्म की एक और लीला देखिये कि धरती ने पुत्र रूप में भौमासुर को जन्म दिया जिसका नाम बाद में संगदोष के कारण दुराचार में लिप्त होने पर नरकासुर पडा़.

अपने तपोबल से अमर होने का भ्रम पालते हुए उसने यह वरदान पाया कि स्वयं की माँ को छोड़कर और कोई उसे नहीं मार सकता. " माँ अपने पुत्र को कैसे मार सकती है ", यह सोचकर वह स्वयं को अजेय समझकर, अहंकार से चूर होकर अत्याचार की सभी सीमायें लाँघने लगा. प्रजापति त्वष्टा की पुत्री सहित सोलह हजार एक सौ कन्याओं को अपहृत करके कारागृह में डालकर उनसे विवाह की योजना बना रहा था. देवमाता अदिति के कुंडल छीनकर ले आया और प्राग्ज्योतिषपुर का एक निरंकुश शासक बन गया जिसके अत्याचार से धरती त्राहि-त्राहि करने लगी.

धरती माँ ने सत्यभामा के रूप में जन्म लेकर और कृष्ण के साथ विवाह करके उनके साथ मिलकर उसका वध करके उसे मुक्ति दिलायी. उसके कारागृह से सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त कराया किंतु इससे उनकी पीडा़ कुछ कम नहीं हुई. करबद्ध होकर उन्होंने कृष्ण जी से निवेदन किया,

" भगवन्, आपने हमें मुक्त तो कर दिया मगर अब हमारे सामने सामाजिक पुनर्वास के सभी द्वार बंद हो चुके हैं. अपहृत होकर कारावास भुगत चुकी हम कन्याओं का कौन पाणिग्रहण करेगा. स्वयं हमारे माता-पिता भी हमें स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पायेंगे. अब हमारे सामने आत्महत्या और पतन के अतिरिक्त एक ही विकल्प है और वह है आपके चरणों में स्थान. हम सब आपको मन ही मन पति रूप में स्वीकार कर चुकी हैं. आपके हाथ में ही हमारा भविष्य है. "

और यहाँ सामने आता है कृष्ण का क्रांतिकारी युगपुरुष रूप जो उनको अन्य सभी अवतारों से अलग करके विविधतापूर्ण बनाता है.सोलह कलाओं का अवतार कृष्ण इन सोलह हजार कन्याओं को पत्नी का सम्मान देता है और समाज के लिए युगचेतना, युगक्रांति का और युगबोध का एक अनुकरणीय उदाहरण बनता है.

इसका एक और आध्यात्मिक अर्थ बताया जाता है. सोलह हजार एक सौ वेदों की ऋचायें हैं जो साक्षात् ब्रह्म से जुड़ती हैं.

आप सबको एक बार फिर नरकचतुर्दशी या छोटी दीपावली की शुभकामनाएं.

द्वारा : सुधीर अधीर

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