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" लाइफ-टाइमर " 💐💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

" लाइफ-टाइमर " 💐💐

  • 206
  • 8 Min Read

लघुकथा
#शीर्षक
" लाइफ-टाइमर" 💐💐
" दीदी क्या सोच रही हो, मुझे तो बहुत डर... लग रहा है "
बंद दरवाजे के इस पार बैठी है सुगनी , सूनी-सूनी आंख, सिर के अधपके उलझे बाल सुलझाने के प्रयास करती देख' हंसा'... बोली।
हंसा को यहाँ आए हुए कुछ ही महीने बीते हैं ।
उसके कातर स्वर सुन कर चिंहुक गई सुगनी...
"कुछ नहीं ,कुछ भी तो नहीं , अभी नई-नई आई .हो ना घबड़ाओ मत तुम्हें भी आदत हो जाएगी " ,
" यहाँ तो फिर भी महफूज है " कहती हंसा को अपने अंक में समेट ... ,
"मैं भी तुझ जैसी ही थी, जब यहाँ आई थी, अब तो वह भी मुझे भुला बैठा है ,
जिसकी खातिर पति से दूर इस 'कारागृह ' में पड़ी हूँ।"
"क्या हुआ था दीदी ?"
"सुनना चाहती हो ? , अच्छा सुनो "
" जवानी के दिनों में बेइंतहा खूबसूरत थी मैं । अपनी खूबसूरती का गुमान भी मुझे था। पति इस सब से दूर कलकत्ते में काम करते"।
" मुझे लगता वो मुझसे प्यार नहीं करता तभी तो विमुख ... मुझसे दूर रहता है "
"किसी कमजोर क्षण में विवाहित रामखेलावन के साथ दिल लगा बैठी "
"पति दूर ...लिहाजा प्रेम... धीरे-धीरे परवान चढ़ता कि,
"खेलावन की पत्नी की रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। "
" हंसा, क्या हुआ, कैसे हुआ मुझे कुछ भी मालूम नहीं ?
"लेकिन परिणाम स्वरूप 'आजीवन कारावास' भुगतने को मजबूर हुई मैं "
" दीदी "
सुबुक... पड़ी हंसा।
"पगली अब तो यही जिनगी हो गई , तू क्यों सोग मनाये ?"
"पति ने बुरी औरत जान नकार दिया,
शुरु में खेलावन जरूर प्रतिमास... आता फिर दोमासा, चौमासा कहता" ,
"चिंता मत कर जमानत पर छुड़ा कर ले जाउंगा"।
" फिर पूरे हफ्ते इतराती... फिरती !
लेकिन धीरे-धीरे आस निराश में बदलती गई।
पूरे ग्यारह बर्ष निकल गये "
"उसे नहीं आना था... नहीं आया "।
अब तो बंद दरवाजे से रिहाई की सोच कर ही घबरा जाती हूँ,
" निकल कर जाउँगी ... कहाँ ? कोई ठौर भी तो नहीं रही ? "।

स्वरचित /सीमा वर्मा

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 2 years ago

Bahut marmik

सीमा वर्मा2 years ago

जी धन्यवाद

दादी की परी
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