कविताअतुकांत कविता
रूठोगे तुम कान्हा तो तुम्हे मनायेंगे
तुम बिन कान्हा अब जी नहीं पाएँगे
पूनम की होगी रात हम तुम रास रचाएंगे
वृन्दावन के कानन में कान्हा रस बस जाऐंगे
जनम जनम की प्रीत के गीत बन जाऐंगे
रोम रोम सबका गाएगा राधा कृष्णा
हम वो सुमधुर स्वरलहर बन जाऐंगे
बजेगा ढोल मृदंग और सतरंगी आँचल लहराएँगे
रीझेंगे सब जब हम रास रचाएंगे
धरा घुमेगी गोल और सब खड़े रह जाऐंगे
नाचेंगे झूम झूम ऐसे की शिव ब्रह्मा भी स्तब्द्ध रह जाऐंगे
ऐसा होगा राधाकृष्ण का अलोकिक मिलन
मुदेंगे जब हो नयन विकल तो संसार सारा पाएँगे