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दिल की गिरह
मैं आज की प्रगतिशील
नारी...तकनीकी राह में
उनत्ति तो बहुत मिली
कंप्यूटर से चिपकी नजरे
कीबोर्ड, फ़ोन और कैमरे
पे खटाख़ट चलती उंगलियां
पर ये उंगलियां छू नहीं पाती
वो जो सुन्दर अहसास हैँ
वो जो छूट गये पीछे बड़े
वो ग़ुलाल लगाते
वो गुजिया बना खिलाते
चाशनी से भरे खिलखिलाते अहसास हैँ l
और दो पंक्तियाँ प्रेषित कर कर इसको अभी के लिए विराम दूँगी...
रंग चूनर धानी ओढकर
बंद करुँ सब कारोबार ll