कविताअतुकांत कविता
.कितनी अजीब बात है ना
ईश्वर को देखने के लिए
हमेशा ऊपर आसमान को
या.......
आसमान के पार देखने
की कोशिश करते हैं
उत्सुकता होती है
एक खुली खिड़की देख पाने की
या कभी चांद को आसमान के
कैनवस से ज़रा सा
खिसकाकर रास्ता देख पाने की
सूरज की तरफ नहीं देखता
या यूँ कि देखा नहीं जा सकता
उसे ऐसे ही छोड़ दिया जाता है
नीचे ज़मीन पर ईश्वर
क्यों नहीं हो सकता
जबकि वो अनंत, अथाह
दिन, रात से परे है
ईश्वर का आरंभ और हमारी
सोच का अंत ऊपर ही क्यों
गहरे में कयूँ नहीं....