कविताअतुकांत कविता
कजरा लगाय के
बिंदया सजाय के
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
लाली लगाय के
कैश बनाय के
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
लहंगा पाय के
चुनरी डाल के
उड़ने गगन को
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
तोहे नचाऊँगी
खुद पे रिझाऊंगी
तेरी होय चली जाऊंगी
ले कान्हा मैं
आय गयी रे
कमर लचकाय के
नैन मटकाय के
हाथ घुमाय के
पैर उचकाय के
तोहे नचाय रही रे
ले कान्हा मैं
आय गयी रे