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मुस्कुराइये कि आप आज...... - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मुस्कुराइये कि आप आज......

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मुस्कुराइये कि आप आज
सिर्फ अपने आप में हैं
मुस्कुराइये कि आज आप
सिर्फ अपने आज में हैं
मुस्कुराइये कि आप बस
खुद के ही आस-पास में हैं

खिलखिलाइये कि आप सबसे
खुशनुमा अंदाज में हैं

खिलखिलाइये कि आप
एक नयी सुबह के,
जीने की, खुश होने की
एक नयी वजह के
एक नये आगाज़ में हैं

यह अंदाज सबसे जुदा-जुदा है
इसके बढ़ते कदमों संग
साथ-साथ चलती-बढ़ती
राह के हर मील के
हर पत्थर पर
जिंदगी का नाम खुदा है

एक चहकता सा
महकता सा,
हर लमहे में
खुद को पाता,
हर लमहे पर
छाता जाता,
इसके रंग में
इसके संग में
जिंदगी का खुशनुमा
अहसास जुडा़ है

हर मोड़ पर
एक खूबसूरत
इत्तफा़क जुडा़ है
एक मुठ्ठी भर
बहकता सा रंग
हवा में उडा़ है
हर फिजा़ में घुला है

पल-पल में इसके,
बंदगी बन
रचता-बसता सा
खुदा है

यह एक बच्चे सा मासूम सा है
खिले फूल की डाली पे
हर लमहे की हरियाली में
एक मीठी मुस्कान बनकर
वक्त के हर साज पे
एक मीठी सी तान बनकर
मदमस्त होकर झूमता है

हर लमहे में लिपटी-
सिमटी खुशियों का
लहराता सा, गहराता सा
महका-बहका सा दामन
आँख मूँदकर चूमता है

नहीं ठहरता यह
इस कल की
और उस कल की
भटकाती सी, अटकाती सी,
भरमाती सी गलियों में
यह तो बसता हर लमहे की
छोटी-छोटी कलियों में
यह तो अब में बसते रब के
आस-पास ही घूमता है

मुस्कुराइये,
आज आप बस
खुद के ही पाँवों तले
जमीन पे हैं

एक खुले-खुले से
सावन की पहली बरखा में
धुले-धुले से
आस-पास अहसास भरे
आकाश तले हैं

हाँ, बस इसके साये में ही
छोटी-छोटी खुशियों के इस
छोटे से सरमाये में ही
इसमें सिमटी खामोशी में
लमहों की इस सरगोशी में
बूँद-बूँद कर मदहोशी के
सारे आलम ढले हैं

इसकी ममता के आँचल में
इस हरी-भरी हरियाली के
भरे-भरे से दामन में
छुपकर पल-पल पले हैं

जीवन के सब स्वाति-बिंदु
इन सीपियों में ढल-ढलकर
कीमती मोती बने हैं
हर बिंदु में आनंद के
सात सिंधु ढले हैं

अजी, कभी तो
अजी, कहीं तो
इस अंधी आपाधापी से
बाहर आकर
वक्त की इस
भारीभरकम सी झोली से
कुछ हसीन लमहे चुराकर
जिंदगी को एक तोहफा दें
जीने का एक मौका दें

हर लमहे संग मुस्कुराकर
उसमें खोकर, खुद को पाकर
उसके संग-संग कदम बढा़कर
इसकी खुशबू
महसूस करें

हर एक लमहे में समाकर
जिंदगी को पास लाकर,
जिंदगी के पास आकर
महका-चहका-बहका सा
अहसास पाकर
खुद को यूँ
महफूज़ करें

महसूस करें कि
हर एक लमहा
जो अब तक था
तनहा-तनहा
एक दूजे संग
एक नये संसार में है
एक मीठी तकरार में है
प्यार भरी मनुहार में है
एक लखनवी अंदाज में है
"पहले आप, पहले आप" में हैं

मुस्कुराइये कि आज आप
सिर्फ अपने आप में हैं
मुस्कुराइये कि आज आप
सिर्फ अपने आज में हैं
एक खुशनुमा अहसास में हैं
एक जवाँ अंदाज में हैं
एक नयी सूबह के
चमकते और दमकते
आगाज़ हैं

पर इसके लिए
मुकम्मल कर लें
कि आप अपने आज में हैं
आज अपने आप में हैं
आज अपने साथ में हैं
खुद के आस-पास में हैं

द्वारा : सुधीर अधीर

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