कविताअतुकांत कविता
कारी बदरी बन पिया घनश्याम
काहे अब मोहे तुम भिझोने आये
मोरो मन अंगना भीजो नयन समंदर सू
एह कबहू रीत ना पाय
कहो श्याम कैसे आये?
जाओ बरसो ना अब बरसाने में
तुम सू प्रीत कर हम बड़ो पछताय
राह तकत थके मोरे नयना
तुम अब सिर चढ़ बरसन कू आय
कहो श्याम कैसे आये?
झूठा लागलपेट ना होय
हिय की बाते हिय सू होय
जाय छोड़ जो कारी बदरी
मोय ऐसी प्रीत ना भाय
कहो श्याम कैसे आये?