Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
माँ जाने क्या कहती है - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

माँ जाने क्या कहती है

  • 196
  • 12 Min Read

( शिव परमपुरुष है और माँ शैलजा जगदंबस्वरूपा प्रकृति.
प्रकृति माँ है और हम सब उसके बच्चे. हमारा बचपन हमें केवल दूध पीने का अधिकार देता है, खून पीने का नहीं मगर हमने तो दुग्धपान के साथ-साथ रक्तपान भी किया है. कभी कोशिश की है उसके मन में झाँकने की, यह समझने की कि, " माँ जाने क्या कहती है " ?

प्रस्तुत ऐसी ही एक कोशिश नवरात्र की इस नवमी रात्रि में )

घायल तन है, आहत मन है
सदा मौन ही रहती है
अपनी शब्दहीन भाषा में
माँ जाने क्या कहती है

( माँ की भाषा तो शब्दहीन है,
मगर उसकी पीड़ा को
हिमालय से अधिक
कौन समझ सकता है?
आइये, उसी से पूछते हैं)

हिमालय :
त्यागमयी है परंपरा
बलिदानों का इतिहास है
जीवन मेरी इन नदियों में
वृक्षों में सबकी साँस है

भारत माँ का सच्चा प्रहरी
उसकी रक्षा में मरा-मिटा
अपनों के द्वारा आहत हूँ
अपनों के हाथों लुटा-पिटा

( हिमालय क्यों लुटा-पिटा अनुभव करता है?
कारण, है ये कटते हुए पेड़)

पेड़ :
कटते पेड़ों का शाप यही
साँसों का अमृत पास नहीं
कहीं पे सूखा, बाढ़ कहीं
और सावन में बरसात नहीं

सावन सूखा, भादों रूखा
प्यासी धरती, रीता अंबर
क्यूँ बसंत है रूठा-रूठा
रीझ रहा पतझड़ ही पतझड़

(अपनी इस दुर्दशा को देखकर धरती क्या कहती है?)

धरती :
सुजला सुफला शस्यश्यामला
मेरा वो रूप कहाँ पर खोया
अभी समय है, सँभलो वरना
काटोगे जैसा है बोया

वो हिरण्याक्ष आया फिर से
सागर में मुझे डुबोने को
बेटों का धर्म निभाओ तुम
जलप्रलय न फिर से होने दो

( हमारे पुराण साक्षी हैं कि जब भी धरती पर संकट आता है तो वह गाय का रूप धारण कर अपनी पीड़ा कहती है. आइये देखते हैं कि गाय क्या कहती है. )

गाय :
मैं तो माँ हूँ, सबके ही
प्राणों में अमृत भरती हूँ
धरती पर बिखरे विष को
खा-खाकर नित मैं मरती हूँ

( और धरती को
स्वर्ग बनाने के लिए
हरिचरण से निकली
ब्रह्मकमंडल से छलकी,
शिवजटाओं पर ढलकी
भगीरथ का अनुसरण करती
धरती पर उतरी गंगा क्या कहती है? )

गंगा :
अपने सभी कपूतों के
सारे पापों को धोती हूँ
अपनी निर्मलता खोती हूँ
और चुपके-चुपके रोती हूँ
मेरे बेटे पाषाणहृदय यूँ
दुर्गति करके छोड़ गये
महाराज भगीरथ, मुझको यूँ
करके अनाथ क्यूँ छोड़ गये

( हमने इस माँ को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझकर माँ का पेट चीरकर रख दिया है और परिणाम हमारे सामने है.)

हमने स्वार्थों की शरशय्या पर
माँ को आज लिटाया है
हम दुःशासन बेटों ने फिर से
चीरहरण दोहराया है

( मगर माँ तो माँ है, उफ तक नहीं करती.
पर आखिर कब तक ? )

सारी पीड़ायें सहती है
फिर भी मूक बनी रहती है
कुछ प्रश्न लिये भीगी पलकों पर
माँ जाने क्या कहती है

द्वारा : सुधीर कुमार शर्मा

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg