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नारी तू नारायणी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

नारी तू नारायणी

  • 111
  • 7 Min Read

( धन्य है इस देश की नारी
जो पूजा और उपवास भी
दूसरों के लिए करती है

करवाचौथ पति के लिए
होई अष्टमी पुत्र के लिए
भैया दूज भाई के लिए

आइये करें नमन,
नवरात्र की नवमी संध्या पर
इस मातृशक्ति को )


नारी, तू नारायणी
नारी, तू नारायणी
इस जग की पालनहारिणी
नारी, तू नारायणी

रिश्तों को अर्थ नया देती,
हर भावना को अभिव्यक्ति.
कभी मीरा, कभी राधा
कभी भक्ति, कभी शक्ति

रस भरती जीवन में बनकर
माँ, बहन, पत्नी, बेटी
इस अद्भुत अहसास बिना तो
रहा अधूरा हर व्यक्ति

नारी व्यक्ति नहीं अहसास है
एक आशा है, विश्वास है
नवप्राण फूंक दे जीवन में
ऐसी एक अद्भुत साँस है

धरती पर मदर टेरेसा है
नभ में सुनीता विलियम है
यह उमा,रमा, यह शारदा
यह फातिमा, यह मरियम है

यह इंदिरा बनकर एक नया
भूगोल और इतिहास रचे
और प्राण छीन ले यम से भी
मन में ऐसा विश्वास बसे

तुम समझे हो अबला जिसको
उसकी तो सिंह सवारी है
मोहन के छप्पन भोग मगर
तुलसी की महिमा न्यारी है

नर से है नारी शब्द बड़ा
नर से इसका संकल्प बड़ा
इस अन्नपूर्णा के द्वारे
शिव लेकर भिक्षा-पात्र खड़ा

है सबसे कठिन परीक्षा इसकी
इसका तपोबल सच्चा है
इस अनसूया की गोदी में तो
बना त्रिमूर्ति बच्चा है

क्यों भूल रहे महिमा इसकी
यह स्वयंसिद्ध, सम्पूर्ण है
यह माँ नहीं है जग में तो
फिर सारी सृष्टि शून्य है

माँ अन्नपूर्णा है तू ही
है तू ही वीणावादिनी
हे शक्तिस्वरूपा, जगदम्बा
हे नारी, तू नारायणी
इस जग की पालनहारिणी
हे नारी, तू नारायणी

-सुधीर अधीर

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