कवितालयबद्ध कविता
[हम सब देवी के उपासक हैं. नवरात्र में माँ का कन्या- रूप में आवाहन करके पूजन, अर्चन और हलवा पूरी के नैवेद्य से संतृप्त करते हैं. किंतु वही माँ जब बेटी बनकर घर आती है तो उसके स्वागत में हम बुझे-बुझे से मन से क्यों करते हैं ? हम गर्व से क्यों नहीं कह पाते कि -
"मेरे घर में माँ आयी है "]
मेरे घर में माँ आयी है
बेटी बनकर माँ आयी है
अद्भुत दिव्य चेतना कोई
मन में आज समायी है
मेरे मन में माँ आई है
मेरे घर में माँ आई है
है सबसे सुन्दर फूल यहीं
जग में सृष्टि का मूल यही
मन के नन्हे से दर्पण पर
छल की कोई धूल नहीं
घर माला के धागे का
यह सबसे सुन्दर मोती है
दो परिवारों को आलोकित
करने वाली एक ज्योति है
मुस्कानों में भगवान बसे
किलकारी में संगीत है
रचा विधाता ने जिसको
वो मधुर सुरीला गीत है
सबसे सुन्दर तस्वीर यही
यह तो एक अनुपम कविता है
सुजला सफला करे धरा को
ऐसी निर्मल सरिता है
संस्कार के तटबंधों में
बँधकर ही ये बहे सदा
मर्यादा की लक्ष्मणरेखा में
संयम से ये रहे सदा
साहस हो इंदिरा गाँधी सा
रण में हो लक्ष्मीबाई सी
संकल्प अटल सावित्री सा
माता हो जीजाबाई सी
सेवा में मदर टेरेसा हो
जन जन इसका गुणगान करे
बने कल्पना नभ छू ले
भारत इस पर अभिमान करे
भारत माता की हर बेटी
नित नूतन सोपान चढ़े
बढ़े तिरंगा लेकर यूँ
भारत का जिससे मान बढ़े
यह जीवन बंद कोठरी सा
यह आँगन बनकर आई है
मेरे घर में माँ आई है
बेटी बनकर माँ आई है
मेरे मन में माँ आई है
मेरे घर में माँ आई है
द्वारा : सुधीर शर्मा