कवितालयबद्ध कविता
अब में ही सब लिपटा है
अब में ही रब सिमटा है
सब में ही रब लिपटा है
रब में ही सब सिमटा है
रब से ही सब प्रकटा है
रब से ही सब पलता है
सब रब में ही ढलता है
रब से ही सब निपटा है
देर बस टटोलने की है
मन की आँखें खोलने है
देर में छुपते सबेर का
गहरा राज खोलने है
द्वारा: सुधीर अधीर