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इस तरह मैं जीना सीख गया - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

इस तरह मैं जीना सीख गया

  • 181
  • 10 Min Read

जो चला गया,
जो चला गया,
जो आँखों को 
छलछला गया
जिसके हाथों 
मन छला गया

जो लूट गया, 
जो छूट गया,
मुझसे जाने क्यूँ
रूठ गया

मुझसे वो 
क्या-क्या 
लूट गया

मन में कुछ, 
जाने कैसे, कब, 
क्यूँ टूट गया

एक शीशे सा 
मन चटक गया
खुद का ही रुख देख 
टूटते आईने में
धुँधले-धुँधले,
बदले-बदले से 
मायने में
देख जिंदगी का चेहरा
मन भटक गया

आशा और निराशा बिच
मन बना त्रिशंकु,
लटक गया

जाने क्या मन को 
खटक गया

और कहाँ फँसा,
कब अटक गया

अब कैसे इसे सँभालूँ मैं ?
अब कैसे इसे सँभालू मैं ?

अपने अतीत की दलदल से
भटकावों की इस फिसलन से
भटकाती सी पगडंडियों,
उलझाती सी हर उलझन से
कैसे अब इसे निकालूँ मैं ?

खो गयी जिंदगी 
बीते कल की पर्तों में,
कंचनमृग के सम्मोहन में
और पल-पल छल के गर्तों में,
किस तरह इसे खंगालूँ मैं

हाँ, जिसने 
जीवन को दगा दिया
मैंने भी 
मन से भगा दिया

और जो लमहे हैं
पास मेरे
बस खुद को 
उनमें बसा लिया

हर लमहे में 
डूब-डूबकर 
अब मैं जीता 

मन की अंजुलि 
भर-भरकर
हर पल को
यूँ बूँद बूँद कर
घूँट-घूँट भर 
अब मैं पीता

हर पल को 
मुठ्ठी में करता
हर खुशबू 
साँसों में भरता

हर आज को 
आगाज़ समझ
जीने का एक 
अंदाज समझ

हर एक लमहे का
हाथ थाम कर
हर आज को
मुकाम कर

इसमें सिमटी,
इस में लपटी
सब खुशियों को पहचान कर
हर लमहे का सम्मान कर
हर कुंठा में मुस्कान भर

हर पल में जीवन खोजकर
हर कोशिश में एक जोश भर
हर चिंतन में महकी सोच भर
चैतन्य-रवि का ओज भर

मत छूटे का अफसोस कर
निज भाग्य पर मत दोष धर
हर प्राप्त में पर्याप्त भर,
आनंद भर, संतोष भर

हर वीराना बरसाना कर
पतझड़ में वृंदावन खोजकर
हर बाला में राधा-दर्शन कर
हर बालक में मोहन खोजकर

क्षण-क्षण को नवजीवन कर
हर चिंतन में संजीवन भर
कण-कण को एक तीरथ कर
हर संकल्प को भगीरथ कर

पल-पल में अरमान भर
कण-कण को भगवान कर
जर्रे-जर्रे में पल-पल
एक नया जहान भर

जब जागा
तभी सवेरा है

वो लमहा
जो है साथ मेरे
उसमें ही मेरा
बसेरा है

बस एक यही तो 
मेरा है
बस एक यही तो
मेरा है

मन जीत गया,
मैं जीत गया
जीवन के इस विद्यालय में
इस तरह मैं
जीना सीख गया

जो बीत गया
वो रीत गया

जो छूट गया
उससे बस नाता
टूट गया

जो हाथ रहा
वो साथ रहा

जो नहीं मिला 
वो सपना है

जो साथ रहा,
जो पास रहा
वो अपना है

हाँ, बस वही तो
अपना है
हाँ, बस ही तो 
अपना है


द्वारा : सुधीर अधीर

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