कवितालयबद्ध कविता
बदल जाते हैं नियम कानून
बदल जाती हैं मर्यादा की परिभाषा,
बदल जाते हैं रीत- रिवाज
बदल जाती हैं जीने की आशा।
कुछ बदलाव करो स्त्री के प्रति भी
उसे समझ जाए पुरुष
यही है स्त्री की अभिलाषा,
ना चाहिए उसको सोने चांदी के जेवर,
झुमका, कंगना,बाली,
नहीं चाहती वह हीरे,मोती
बस चाहत हैं इतनी की स्त्री प्रति
ना निकले किसी के मुख से गाली।
बदलाव इतना ही करे पुरूष
तो बदल जाए हर परिभाषा,
यही हैं स्त्री की अभिलाषा।
Suman ( S Krishnan )
9 June 2020