Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
रूह की आँच… - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रूह की आँच…

  • 82
  • 2 Min Read

गीली मिट्टी तप के थोड़ा जरूर दरकती है
पर अच्छे से आकार मे भी तो पकती है
मीठी नदिया समंदर में थक के मिलती है
पर मैदानो को हरियाली से भी तो भरती है
बूढी माँ के माथे पे आज लकीरें गहरी दिखती हैं
जवा चेहरो पे मुस्कान वही तो भरती है
शमशान पे मेरी जो रूह की आँच ठण्डी है
भर के रौशनी गयी जो दिलो में , आँखों के कोरो से हलकी सी बहती दिखती है

999500_654734241222397_1605623656_n_1632915745.jpg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg