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पंछी - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पंछी

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  • 4 Min Read

आज फिर पंछी सा उड़ने को दिल चाहता है।
इन मस्त बहारों में तुमसे मिलने को दिल चाहता है
पर ज़माने से अब तक हमने ये जाना है कि
कयामत से गुजरा हर इक का फ़साना है

फिर भी ये घटाए देख बेताब दिल दीवाना है
तुम्हरी खुशबू का अहसास दिलाती ये मंद ब्यार
बदलते मौसम ने लो याद दिला ही दिया
पल पल बदलता वो तुम्हारा मिजाज

ये मंद स्पर्श, बयार के दिल को धड़का जाते है
और कोयलो के गीत, तुम्हारे अनकहे शब्दों से
कानो में उतरते से जाते हैं
साँसे फिर थम सी जाती है, दिल को मेघो सा तरसाती है
नजरें झुक कर उठ जाती है, हर बूंद मे तुमको पाती हैं |

तुम्हारा अनदेखा चेहरा आँखों के सामने हर पल मैंने पाया है
तपती दोपहरी मे तुम्हारे अहसासों की ही तो छाया है

पर गर मिल न सको तुम तो कोई गम नही
गुजरे जिंदगी तेरी चाह में पपीहे सी प्यास में
ये भी तो कुछ कम नहीं |

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