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सूखे पत्ते - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सूखे पत्ते

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वो अनदेखा कर पत्तो को, फूलो के लिए हर पल मरता रहा
पत्तों को न सहला, पेड़ो की जड़े मजबूत करता रहा
पत्तो की छाँव में बैठ, करता रहा फूलो के खिलने का इंतज़ार
पत्तों को न मिला उसका प्यार, न मिली उसके प्यार की छाया
रहा फूलो के ख्यालो में, और पत्ते सूख के झरते रहे
माना पानी लगा कर फूल तो ढेरो खिल जाएंगे
पर जो बिखर गए सूख के पत्ते वह कहाँ फिर वापस जुड़ पाएंग़े
जानके भी माली ने ये न जाना, रहा हर वक़्त फूलो का दीवाना
खिलेंगे जो फूल, शाख पे, वह किसी और का घर सजाएँग़े
और सूखे पत्ते खुद जलके भी ठण्डी रात में माली को गरमायेंगे

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