कविताअतुकांत कविता
तू खोल मन की बेड़िया
तू सत से प्रज्वलित कर तिमिर
तू ना शंकित हो कदाचित्
तू स्वयं कर अपने लक्ष्य निर्धारित
बंद कर अंतर्द्वंद, विषमताऐ कर खँड-खँड
सम्भावनाऐ हैं अपार, चीर कर बाधाओं के द्वार
तू स्वयं हो कर उज्ज्वलित, बन स्वयंभू
तू चल, एक शक्ति पुंज बन
तू हो कर प्रसन्नचित, हो छल-कपट से रहित
हाँ तू है स्वयंभू, करना है तूने सर्वहित