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कविताअतुकांत कविता
कान्हा! ये बातें राग द्वेष की l ये बातें काम योग मोक्ष की सब बड़ी ही नीरस l बेकल हृदय की पीर बन होठों पें आऊं l मैं बस सबमें प्रेम रस भर जाऊँ l स्वरलाहरियों सा साँसों में बस जाऊँ