कविताअतुकांत कविता
उनके शीतल सरस सुमधुर अधर
उनके चंचल चपल नयन के कटाक्ष
उनके पावन पंकज पद की पाखुरिया
उनके आशीष को उठते हस्त विशाल
उनके कंठन को चरणामृत की प्यास
नैनन को बस पिया मिलन की आस
उनकी थपथापती हथेलियों से कटती
मन मस्तक पर छायी हर अंधीयारी रात
उनकी स्वरलहरियो के मोतियों से
अपनी चूनर पे कितने तारें सजा लूँ
उनकी आवाज़ की खनक भर के
लाल हरी पीली चूड़ियों में बसा लूँ
उनकी बेबाकियो को अधरों पें
लगा के लाली सा सजा लूँ
उनकी उलझी लटों से अपने
जीवन की हर मुश्किल सुलझा लूँ
उनकी तटस्था को कसके कमर
करधनी बना सब जिम्मेवारी निभा लूँ
उनकी कर्मठता के नित गुणगान गा
निष्प्राण तन में संजीवनी से प्राण डालूँ l
माँ राधिके वरदान दे!
माँ शारदे वरदान दे!