कविताअतुकांत कविताभजन
हे माँ शारदे वरदान दो
हे माँ राधिके वरदान दो
मुझमें से ये "मैं" हटा दो
मेरे अंदर पड़ा ये "शव" जाला दो
कि जब तक हों स्पंदन
ऊर्जा का ऐसा ओज दो
हे माँ शारदे! जल रहीं धरा
संगीत-धारा से मुझमें
नये उज्वल प्राण दो
तड़प रहीं मेरे मन आँगन
में नाच नाचने सुन्दर आकृति
ज्ञान के स्फुटित प्रकाश से
विकृति तन-मन की सारी मार दो
ज्ञान-गान को प्यासे कंठ में
सुरों की माखन मिसरी और
जिव्या पें मीठा सा पान दो
हे माँ शारदे वरदान दो
हे माँ राधिके वरदान दो