Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
कालचिंतन - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कालचिंतन

  • 80
  • 6 Min Read

( पितृपक्ष में प्रकाशन हेतु विचारार्थ प्रस्तुत है, एक ही सिक्के के दो पहलू, जीवन-मृत्यु को परिभाषित करती रचना )

मृत्यु एक संक्रमण
एक स्थानान्तरण
आत्मा का
इस शरीर से उस शरीर तक
एक सेतु जो पहुँँचाता है
इस तीर से उस तीर तक

मृत्यु जीवन का परम सत्य
एक पूर्वनियोजित अटल सत्य
जीवन का अंतिम पड़ाव
और एक अवांछित लक्ष्य
जिसे हम पाने को विवश हैं
हम ना जाने क्यों विवश हैं
उन अन्तिम अज्ञात क्षणों की
प्रतीक्षा के लिए
पल-पल चुनौतियों की
अग्निपरीक्षा के लिए

उम्र पल-पल बूँद-बूँद रिसती है
जीवन घटती साँसों की
एक उलटी गिनती है
कठपुतलियाँ हैं हम सब
जिसकी डोर प्रभु के हाथ में
हाँ, हम सब बंधक हैं
वक़्त के, हालात के
साँसों की श्रंखला तोड़ते
उस झंझावात में
बिखर जाएगा सब यहीं
कुछ भी न जायेगा साथ में
सिर्फ अपने पाप और पुण्य के सिवा
बाकी सब कुछ है बेवफा

फिर क्यों न इस जीवन को
हम सुन्दर सा एक मोड़ दें
हो सके तो जीवन-पथ पर
कुछ पद-चिह्न छोड़ दें
कुछ तो ऐसा करें,
मिटे इस मन की सारी गन्दगी
कुछ तो ऐसा हो
बन जाये जिंदगी ही बन्दगी
जग में आये रोते-रोते
जग ने बहलाया हँसते-हँसते
फिर जग छोड़ें तो जग रोये
और हम जायें हँसते-हँसते

द्वारा: सुधीर शर्मा

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg