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कान्हा - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कान्हा

  • 139
  • 2 Min Read

ओ रे कान्हा ,
अब न मोहे और सजा दे
माथे पे मोरे बिंदिया लगाय दे l
ओ रे कान्हा ,
आंखन में कlरो कजरा लगाय के
बालो में मोरे गजरा सजाय दे
प्रीत की चूनर मोरे अंग उढाय दे
ओ रे कान्हा ,
तनिक मुरली बजाय के
रास रचाय ले
मोहे जीय से लगाय के
अपना बनाय ले

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