मैं अब तुम्हे नहीं मिलूंगी...जिंदगी थी जो पन्नों पे उतार दी है... लकीरें हैं कुछ इसमें जो साँसों से खीची हैँ... ख्वाब थे कुछ जो खुश्बू बने पड़े हैँ इसमें... जो उठो पड़के तो लगाव का बुकमार्क लगा देना....थोड़ा जी जी उठूंगी मैं... खुद को फिर खुद ही पड़ूँगी मैं