कविताअतुकांत कविता
जब सूरज की रोशनी पीले पुष्पों पे पडती है
जब देख बदरा तपती धरती सौंधी सी हसती है
जब फूलों पे तितलियाँ भोरो संग गुंजन करती हैँ
जब स्वाति की बूँदे पपीहे का मुख रसीला करती है
जब नई उमंगओ की कूची पुष्पों में रंग भरती है
जब महक मन की तन में नई मादकता भरती हैँ
जब राधा बौराय माधो को गले लगा लरजती है
समझो कि बसंत ऋतू में प्रेम मधुरसम मस्ती है