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तक्षिका - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

लेखसमीक्षा

तक्षिका

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एक पाठकीय प्रतिक्रिया
'' तक्षिका : लेखक श्री निरंजन धुलेकर

तक्षिका " श्री निरंजन धुलेकर जी की, एक अद्भुत क्रति है

लगभग तीन दशकों के दीर्घ अन्तराल के बाद अनायास ही श्री धुलेकर जी से फेसबुक पर, उनकी आकर्षक कहानियों के माध्यम से पुनः मिलना एक सुखद आश्चर्य रहा है..! जिसकी व्यस्त बैंकिंग कैरियर में कभी कल्पना भी नहीं की थी..!

उन्होंने अनेक कविताएं, लेख, निबंध, गंभीर लघु और लंबी कथाएं, बाल साहित्य, फिल्मी कहानियों के साथ आकाशवाणी और राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थानों की निजी रेडियो वाहिनियों के लिए भी, विषय आधारित लेखन किया है.

पारिवारिक प्रष्ठभूमि पर लिखी उनकी अनेक हास्य - लघुकथाएं और व्यंग्य भी ख़ासे चर्चित रहे हैं.
फेसबुक पर भी उनकी अनेक रचनाएँ, खूब पढ़ी जाती हैं, चर्चित , और प्रशंसित होती रहती हैं.

"तक्षिका" की भाषा  बहुत शुद्ध किन्तु सुगम और प्रवाहमय है, यह हमें एक बिल्कुल अलग, अलौकिक संसार में ले जाती है.
तक्षक जनजाति की " कम्बल पुत्री " तक्षिका का तो शैशव ही भयंकर सर्पों के बीच ही बीतता है, जिसके लिए भयावह सर्प भी किसी माला, डोरी या रस्सी से अधिक कुछ भी नहीं थे.


उपन्यास में, दो राज्यों " सुमेर राज्य" और " महा-राज्य " के बीच शत्रुता की कथा है. सुमेर राज्य का सेनापति त्रासक, राजा सुमेर सिंह का विश्वास पात्र और रानी गन्धा का भाई था, अपने नाम के अनुरूप अत्यंत क्रूर व अत्याचारी भी था.
सुमेर राज्य में जल का गम्भीर संकट था. जल स्रोत बहुत सीमित थे और मुख्य स्रोत नदी का उद्गम-स्थल पड़ोसी शत्रु देश  " महाराज्य "  में था, जिसका प्रवाह, राज्य में आते-जाते, बहुत क्षीण हो जाता था.
निरंतर जल ह्रास के कारण सुमेर राज्य में तीव्र जनाक्रोश था.
जहां महा-राज्य में समृद्धि थी.शत्रु  सुमेर राज्य में, जल के नितांत अभाव से समस्याएं ही समस्यायें थीं. जो बढ़ती ही जा रही थीं.

" महाराज्य" के विरूद्ध एक अत्यंत, गहन षड्यंत्र का सूत्रपात होता है. उसका जलस्त्रोत बुरी तरह प्रभावित होता है. जिससे  महाराज तथा तेजस्वी और यशस्वी युवराज अत्यंत चिंतित होते हैं तथा युवराज तुरंत क्रियाशील हो जाते हैं और अपने सूत्रों से, योजना बनाते हैं, उसे क्रियान्वित करते हैं और एक गूढ़, षड्यंत्र का पटाक्षेप करते हैं.

वे बिना किसी जनहानि के,सुमेर राज्य पर विजय प्राप्त करते हैं. तक्षिका की प्रतिज्ञा के अनुसार , वे तक्षिका को सुमेर सिंह से प्रतिकार लेने का अवसर देते हैं और वह दुष्ट, उसके विष दंश से दम तोड़ता है.

सुमेर राज्य को नया शासक मिल जाता है जो " महाराज्य " के आधीन रहेगा.
छोटे-छोटे कालखण्डों में विभाजित यह उपन्यास हमें एक बिल्कुल अलग और रहस्यमय संसार में ले जाता है.

निश्चित रूप से यह एक आकर्षक और पठनीय पुस्तक है. पुस्तक का मुद्रण भी बहुत अच्छा है.

कमलेश वाजपेयी
नोएडा

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