कविताअतुकांत कविता
मैं मेरी हाँ मेरी...
मेरी सदाये अब करने लगी गुप चुप
रात-दिन मुझसे ही सरगोशियाँ...
मेरा इश्क़ मुसलसल होने लगा मुझसे
मुझें मुझसे ही आने लगी मदहोशियाँ...
मेरी बेबाकियाँ थक के ले रही अंगड़ाईयाँ
मुझे आगोश में लेने लगीं मेरी खामोशियाँ
मेरा मुझसे होने लगा बाबस्ता अब राब्ता
मेरीआवारगी करने लगीं मुझसे गुस्ताखियाँ
मुझ पर छा रही सौंधी सौंधी सी संदली फ़िज़ा
मुझे भाने लगी दिलरूबा सी मेरी ही रवानगियाँ
मेरा दिल मेरा जेहन होने लगे हैँ इकदूजे के हमनवा
आफरीन रूह भी अब हमनशी होने को है महरबा...