Or
Create Account l Forgot Password?
कवितागीत
वे दो चकमक पत्थर, कुछ देर को जले फिर हुए बेअसर, वे दो चकमक पत्थर l कितने बेबस, कितने विचित्र ! थे तनिक बारिश से वो सोगाये l जलती-बुझती चिंगारी से अब क्या अंगार जलाये ? कैसे हो संवर्धन शेष बस जहाँ रह गया संघर्षण l