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चकमक पत्थर - Deepti Shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

चकमक पत्थर

  • 190
  • 2 Min Read

वे दो चकमक पत्थर,
कुछ देर को जले
फिर हुए बेअसर,
वे दो चकमक पत्थर l
कितने बेबस,
कितने विचित्र !
थे तनिक बारिश से
वो सोगाये l
जलती-बुझती चिंगारी से
अब क्या अंगार जलाये ?
कैसे हो संवर्धन
शेष बस जहाँ
रह गया संघर्षण l

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